|
उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
|
203 पाठक हैं |
|||||||
जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
11
नज़ीर अभी ब्रेक-फास्ट पर बैठी ही थी कि अज़ीज़ अहमद का टेलीफोन आया। वह होटल इम्पीरियल से बोल रहा था। उसने कहा, ‘‘कल जब हम तुमसे मिलकर अपने निवास स्थान पर पहुंचे थे तो हमारे हाई कमिश्नर साहब को वापस इस्लामाबाद आने का हुक्म आ चुका था और नियम से उनके कहीं दिल्ली से बाहर जाने पर मुझे उनका स्थानापन्न होना चाहिए था, मगर उनके स्थान पर एक अन्य राजनीतिज्ञ मियां कुरबान अली जो किसी जमाने में पंजाब असेम्बली के मैम्बर थे, चार्ज लेने के लिए आ गए। मैंने हाई कमिश्नर के चार्ज देने से पहले उनसे दो महीने की छुट्टी ले ली और नये कमिश्नर के कुर्सी पर बैठने से पहले यहां इम्पीरियल होटल में आकर रहने लगा हूँ।
‘‘मुझे आज सुबह यह पता चला है कि अपने पुराने हाई कमिश्नर तो पाकिस्तान के लिए रवाना हो गए हैं और नये साहब ने कुर्सी पर बैठते ही मेरी छुट्टी ‘कैन्सिल’ कर दी है और मुझे उनसे सम्पर्क बनाने की आज्ञा दी है। इसलिए मैं तुम्हें सूचित कर रहा हूं कि मैं यहां से लापता हो रहा हूं और किसी दिन तुम्हें लन्दन में मिलूंगा।’’
‘‘और आण्टियां कहां हैं?’’
‘‘मेरे साथ ही हैं! हम यहां से दो-दो कर भिन्न-भिन्न दिशाओं को जा रहे हैं।’’
नज़ीर अभी विचार ही कर रही थी कि संविधान से राज्य और तानाशाही शासन में क्या अन्तर है कि उधर से टेलीफोन बन्द हो गया।
|
|||||

i 









