|
उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
|
203 पाठक हैं |
|||||||
जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
नज़ीर ने कुछ देर पीछे इम्पीरियल में टेलीफोन किया तो होटल के मैनेजर का उत्तर आया, ‘‘अज़ीज़ अहमद नाम का कोई व्यक्ति होटल में नहीं ठहरा हुआ।’’ नज़ीर समझ गयी कि अज़ी़ज़ साहब ने नाम बदल लिया है। उसने टेलीफोन बन्द कर दिया।
लंच के समय किसी का टेलीफोन आया। कोई व्यक्ति पूछ रहा था, ‘‘आप नज़ीर बागड़िया बोल रही हैं?’’
‘‘हां।’’
‘‘एक साहब जो अपना नाम अज़ीज़ अहमद बता रहे हैं, वह दिल्ली से जा रहे हैं। यदि आप दो बजे तक हवाई पत्तन पर मिलने आ जायें तो वे आपसे कुछ कहना चाहते हैं।’’
‘‘आप कौन बोल रहे हैं?’’
‘‘मुझे उन्होंने आज ही नौकर रखा है और अपने साथ ले जा रहे है।’’
‘‘आप कहां से बोल रहे है?’’
‘‘ऐयरोड्रोम से।’’
नज़ीर को यह टेलीफोन करने वाला कोई संदिग्ध व्यक्ति प्रतीत हुआ। अतः उसने कहा, ‘‘मैं अभी आ रही हूं।’’
परन्तु उसने उसी समय यू० के० हाई कमिश्नर को टेलीफोन कर दिया और उसने मिस्टर मिचल से बात करने की इच्छा प्रकट कर दी। उसने अपना नाम भी बता दिया।
|
|||||

i 









