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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘चलिए! चलकर देखिएगा। इस रेखा की महत्ता अब भारत सरकार को भी अनुभव हुई है। बात यह है कि पण्डित जी हैं गांधी जी के चेले और वह अपने कामों में किसी भी सैनिक अफसर को अपने विश्वास में नहीं लेते थे। पण्डित जी के सलाहकार राजनीतिक में खेलने वाले व्यक्ति ही रहे हैं। मिस्टर कौल किसी प्रकार से उनके विश्वास-पात्र बने तो उनको देश की सीमा का ज्ञान हुआ है और अब वह मिस्टर मैकमोहन की दूरदर्शिता पर विस्मय करते प्रतीत होते हैं।’’
‘‘मैं भी उस अंग्रेज अधिकारी के मन की बात जानकर उसके चरणों पर फूल चढ़ाना चाहता हूं।’’
इस समय ब्रेक-फास्ट खाया जा चुका था। ये लोग कलकत्ता पहुंच आगे जाने के विषय पर विचार करने लगे।
लेफ्टिनेण्ट मेजर जसवन्तसिंह ने कह दिया, ‘‘मुझे लेने के लिए सैनिक हवाई जहाज कलकत्ता आएगा, परन्तु मैं सिविलियन जहाज में ही गोहाटी जाने का विचार रखता हूं।’’
‘‘किसलिए?’’
‘‘सैनिक जहाज तुरन्त जाना चाहेगा और मुझे एक दो घण्टे का कलकत्ता में काम है।’’
‘‘तो वह सैनिक जहाज आपकी प्रतीक्षा नहीं करेगा?’’
‘‘कर तो सकता है, परन्तु मुझे यहां ठहरने की सफाई देनी पड़ेगी जो मैं देना नहीं चाहता।’’
‘‘तो क्या करियेगा?’’
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