लोगों की राय

उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595
आईएसबीएन :9781613010143

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

203 पाठक हैं

जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


अगले दिन यात्रा के दोनों साथी रेल के डिब्बे में मिले। गोहाटी से रंगिया तक दो घण्टे की यात्रा थी। इन दो घन्टों में अपना निजी परिचय ही दिया जाता रहा। जसवन्तसिंह ने बताया, ‘‘मैं एक पंजाबी जाट और गोरखा मां का लड़का हूं। मेरे पिता कुबेरसिंह रोहतक के समीप एक गांव के रहने वाले थे। वह ब्रिटिश काल में एक गोरखा रेजीमैण्ट में सिपाही थे और वहां अपने अफसर की लड़की से विवाह कर बैठे। मैं और मेरे दो भाई इस संयोग का फल हैं। मेरी एक बहन भी है। वह अभी अविवाहित है।’’

तेज ने भी अपने परिवार का परिचय देकर कहा, ‘‘आज से छः दिन पूर्व मेरा लन्दन में एक पाकिस्तानी लड़की से विवाह हो गया है। वह इस समय दिल्ली में मेरे साथ थी। वह लड़की एक पाकिस्तानी की अंग्रेज औरत से सन्तान है। उसकी मां लन्दन में रहती है।’’

इस प्रकार दो घण्टे की यात्रा परम्पर परिचय बढ़ाते हुए समाप्त हुई तो दोनों रंगिया स्टेशन पर उतरे। लेफ्टिनेंट साहब के लिए सवारी आयी हुई थी। तेजकृष्ण को भी उसमें स्थान मिल गया और तेजकृष्ण सैनिक शिविर में जा पहुंचा।

तेज ने अपने पत्र-प्रतिनिधि के कार्य में फ्रांस, इटली, इंगलैंड के सैनिक शिविर देखे थे और उनकी तुलना में नेफा में भारतीय सेना का शिविर दिल्ली के महलों से झुग्गी-झोंपड़ी की तुलना करते थे।

तेजकृष्ण का परिचय वहां के अन्य अफसरो से कराया गया। प्रायः सब पंजाबी अफसर थे। एक लेफ्टिनेण्ट अमरीकसिंह था। वह बहुत ही खुश मिजाज और सभ्य स्वभाव का व्यक्ति था। उसने हँसते हुए कहा, ‘‘तेजकृष्ण जी! आप पहलें हिन्दुस्तानी पत्र-प्रतिनिधि हैं जो इस दुर्गम क्षेत्र के दौरे पर आये हैं। यूरोपियन लोग आते रहते हैं, परन्तु एक हिन्दुस्तानी को देख मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है। हम चाहते हैं कि यदि आपको समझ आये कि हमारी सुख-सुविधा में कुछ वृद्धि होनी चाहिये तो आप अवश्य लिखियेगा।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book