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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
सी० ओ० जसवन्तसिंह ने एक हवलदार और एक जीप तेजकृष्ण की सेवा में कर दी और रंगिया में आधा दिन और एक रात रहकर वह वहां से चल पड़ा। वहां से तेजपुर और फिर तेजपुर से मिसामरी एक दिन में ही पहुंचा। रंगिया से मिसामरी तक तो सड़क और मार्ग में पुल इत्यादि सब ठीक थे। यद्यपि सड़क डबल ट्रैफिक के लिए नहीं थी तब भी यह थी। परन्तु मिसामरी से आगे सड़क की अवस्था ठीक नहीं थी।
मिस मरी से चक्कू, बोमटिला और दिरांग प्रातःकाल से चलकर सायंकाल तक बहुत ही कठिनाई से पहुंचे। तेजकृष्ण को यहां पहुंच समझ में आने लगा कि इस प्रकार अनेक स्थान पर टूटी हुई सड़क से किसी युद्ध काल में यातायात का निर्वाह नहीं हो सकेगा। वह कल्पना कर रहा था कि यहां ट्रेफिक जाम हो जाये तो कितनी देर में मार्ग साफ कराया जा सकता है। उसका अनुमान था कि दो दिन भी लग सकते हैं और इतनी देर में तो युद्ध का वारा-न्यारा हो सकता है।
मैकमोहन सीमा-रेखा की प्रतिष्ठा कराने के लिए कितनी शक्ति की आवश्यकता है, वह कल्पना ही कर सकता था। उसका विचार था कि यदि चीनियों को यातायात की इस अवस्था का ज्ञान हो गया तो वे तुरन्त आक्रमण कर देंगे। इस पर उसे खम्पा अधिकारी की याद आ गयी तो उसे तिब्बत में चीनी सेना के दर्शन कराने के लिए नियत किया गया था। क्या वह यहां की सब अवस्था चीनियों को नहीं बता चुका होगा? इस सब विचार से वह कँपकँपी अनुभव करने लगा।
पण्डित जवाहरलाल की बढ़ा-चढ़ा कर अपनी तैयारी की बात कहने में तथ्य प्रतीत हो रहा था। वह यह कि दुर्बल व्यक्ति अपनी शक्ति की शेखी बघारता ही है जिससे शक्तिशाली शत्रु धोखे में पड़कर डर जाये।
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