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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
इस पर तेजकृष्ण ने अपना परिचय दे दिया। उसने कहा, ‘‘मेरा विवाह हुए अभी एक सप्ताह ही हुआ है। विवाह होते ही इधर काम पर भेज दिया गया हूं।’’
‘‘किसने भेजा है?’’
‘‘जिनके यहां मैं नौकरी करता हूं। लन्दन में एक बहुत धनी समाचार-पत्र है। मैं उस पत्र का प्रतिनिधि हूं। इधर की तैयारी देखने आया हूं।’’
कुलदीप मुस्कराया और पूछने लगा, ‘‘क्या देखा है?’’
‘‘अभी तक जो कुछ देखा है वह कुछ बहुत सन्तोषजनक नहीं।’’
‘‘क्या असन्तोषजनक दिखायी दिया है?’’
‘‘मेरा कहने का अभिप्राय है कि यह स्थान अभी तैयारी के बहुत ही प्रारम्भिक स्तर पर है।’’
इस पर कुलदीप शर्मा मुस्कराया और दीर्घ निःश्वास खींच कर बोला, ‘‘बाबू साहब! इसे प्रारम्भिक स्तर नहीं कहते। प्रारम्भ तो ए-बी-सी से किया जाता है। यहां आरम्भ छोड़ पढ़ाई जैड-वाई-ऐक्स की और अर्थात् विपरीत दिशा में चल रही है।’’
‘‘कुलदीप जी! क्या मतलब है?’’
‘‘मतलब यह कि जब मकान बनाया जाता है तो मकान बनने के स्थान पर पहुंचने का प्रबन्ध किया जाता है जिससे वहां ईंट, चूना इत्यादि सुगमता से पहुंचाया जा सके।’’
‘‘यहां चौकियां धड़ाधड़ स्थापित की जा रही हैं, परन्तु वहां तक पहुंचने का प्रबन्ध नहीं किया गया।’’
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