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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘परन्तु हवाई जहाजों और हैलीकॉप्टरों से सामान पहुंचाने का प्रबन्ध जो है।’’
‘‘यह प्रबन्ध तो आपत्कालीन प्रबन्ध होता है। जब किसी दुर्घटनावश कुछ लोग ‘बेस’ से कट जायें तो अस्थायी रूप में हवा से सामान पहुंचाया जाता है, परन्तु सामान्य स्थिति में यह तरीका कारगर नहीं होता। विशेष रूप में पहाड़ी क्षेत्रों में।’’
‘‘परन्तु सड़क तो बनायी है?’’
हवलदार कुलदीप हँस पड़ा। हँसते हुए बोला, ‘‘हमें यह बताया गया है कि चीनियों का भारत से भगड़ा करने का इरादा नहीं और चौकियां तो ऐसे हैं कि जैसे सीमा प्रकट करने के लिए ‘बाउण्डरी पोल्ज़’ खड़े किए जाते हैं।’’
इस समय तक दोनों पचास गज लम्बी सड़क पर से जीप गाड़ी को नीचे उतार कर धकेलते हुए आए थे।
तेज के लिए सैनिकों में यह भावना कि युद्ध नहीं होगा, विस्मयजनक हुई। वह समझता था कि जैसी उसकी सूचना है कि युद्ध अनिवार्य और समीप ही है, यदि सत्य सिद्ध हुई तो ये लोग तो भाग खड़े होंगे। इस प्रकार की भावना वाले व्यक्ति डटकर विरोध नहीं कर सकेंगे। हवलदार कुलदीप शर्मा से जब खुलकर बात होने लगी तो उसने बताना आरम्भ कर दिया, ‘‘हमारे पास ‘ऐम्युनिशन’ प्रति व्यक्ति दस राउन्ड से अधिक नहीं है। सड़कों के अभाव में तोपें तो पहुंच ही नहीं सकतीं। बन्दूकें और पिस्तौल भी पर्याप्त नहीं।’’
‘कुल कितने जवान इस क्षेत्र में हैं?’’
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