लोगों की राय

उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595
आईएसबीएन :9781613010143

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

203 पाठक हैं

जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


‘‘ठीक है! हमारे साथ चलो। वहां कोई नहीं पहुंच सकेगा।’’

‘‘क्यों भाई साहब!’’ मैत्रेयी ने तेजकृष्ण की ओर देखकर पूछ लिया, ‘‘आपको कुछ आपत्ति तो नहीं?’’

‘‘मैं तो माता जी को होटल में छोड़ कुछ मित्रों से मिलने के लिए जा रहा हूं। रात सोने के समय लौटूंगा।’’

‘‘तो माताजी! चलिए। नहीं तो कोई अन्य शोक प्रकट करने आ जायेगा। मुझे यह ठीक नहीं लग रहा। मैं अपने को शोकग्रस्त नहीं समझती। मैंने अपने हृदय को टटोला है। उस समय भी टटोला था जब विवाह का निश्चय किया था अथवा जब आप पिछले सप्ताह बता रही थीं। अब भी मैंने बहुत विचार किया है। मुझे अपने चित्त की अवस्था में किसी प्रकार का अन्तर आया प्रतीत नहीं हुआ। मैं तो यह इस प्रकार समझी थी कि मैं किसी नये विषय पर अध्ययन आरम्भ करनेवाली थी, परन्तु उसका साहित्य पुस्तकालय में नहीं मिल रहा।’’

‘‘तब ठीक है! किसी अन्य विषय पर अध्ययन का विचार बना लो।’’

तेजकृष्ण मां के इस वाक्य में अपने संकेत समझने लगा था। वह भी विचार कर रहा था। उसके मस्तिष्क से अभी नज़ीर का नशा उतरा नहीं था। इस कारण उसने मां के कथन पर मन से उठे विचार को अनुपयुक्त समझ निकाल दिया और बोला, ‘‘माताजी! चलिये। ज्यों-ज्यों डिन्नर का समय समीप होता जायेगा, अधिक और अधिक लोग आयेंगे। तब कठिन हो जाएगा।’’

तीनों उठ पड़े मैत्रेयी ने अपना ब्रीफ केस उठाया और यशोदा के साथ चल दी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book