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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
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अगले दिन प्रातः के अल्पाहार के समय यशोदा और तेजकृष्ण मैत्रेयी को साथ लिए हुए लन्दन के हवाई पत्तन पर पहुंचे तो करोड़ीमल जो उनको लेने वहां पहुंचा हुआ था, देखकर हंस पड़ा।
यशोदा ने प्रश्न भरी दृष्टि में पति की ओर देखा तो करोड़ी मल ने पत्तन से बाहर निकलते हुए कहा, ‘‘मैं कुछ ऐसी आशा कर रहा था और अपनी आशा पूरी होती देख बरबस हंसी निकल गई है।’’
यशोदा ने पूछ लिया, ‘‘क्या आशा करते थे?’’
‘‘यही कि मेरा पिछले सप्ताह का प्रोफ़ेसर साहब को दिया उपदेश फल लायेगा। पूछने की बात यह है कि यह फल विवाह के पहले निकला है अथवा विवाह के उपरान्त।’’
‘अब हंसने की बारी मैत्रेयी की थी। उसने मुस्कराते हुए पूछा, ‘‘क्या आपने ही उनको सम्मति दी कि वह लापता हो जायें?’’
करोड़ीमल ने गम्भीर हो कहा, ‘‘नहीं! मैंने तो यह भविष्यवाणी की थी कि तुम लापता हो जाओगी।’’
‘‘तो आपका अनुमान अशुद्ध सिद्ध हुआ है। वह लापता हो गये हैं।’’
इस समय तीनों मोटरगाड़ी के पास पहुंच गए थे। करोड़ीमल ने मोटर की चाबी तेजकृष्ण को दी और कहा, ‘‘गाड़ी तुम चलाओ।’’
तेजकृष्ण गाड़ी को चलाने के लिए ड्राईवर की सीट वाले द्वार की ओर गया तो करोड़ीमल ने पुनः पूछा, ‘‘वह विवाह से पहले लापता हुआ है अथवा विवाह के उपरान्त?’’
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