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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘पहले ही!’’ यशोदा ने उत्तर दिया, ‘‘यह उनकी कोर्ट चलने की प्रतीक्षा करती हुई अपने क्वार्टर में बैठी थी। जब हम पहुंचे तो प्रतीक्षा करती हुई निराश हो चुकी थी।’’
‘‘हां, यह कुछ अप्रत्याशित है। खैर, परिणाम वही है जो मैं विचार कर रहा था।’’
तीनों गाड़ी में बैठ गए। करोड़ीमल तेजकृष्ण के समीप गाड़ी की अगली सीट पर बैठ गया और यशोदा तथा मैत्रेयी पीछे वाली सीट पर बैठ गयीं।
गाड़ी चली तो करोड़ीमल ने कहा, ‘‘मैं ब्रेकफास्ट तैयार रखने के लिए कह आया था। घर पहुंचते ही मैं अपने कार्यालय में चला जाऊंगा। इस कारण जानना चाहता हूं कि मैत्रेयी बेटी का आज का क्या कार्यक्रम है। क्या यह विश्वविद्यालय का काम छोड़ रही है?’’
‘‘पिताजी! अभी ऐसा कोई विचार नहीं। मैं तो अपने काम से ‘वेडिड’ हूं। यह तो मुसलमानों वाली दूसरी शादी थी।’’
करोड़ीमल पुनः हंसा। हंसते हुए बोला, ‘‘और यह विवाह मुसलमानी शरा के अनुसार ही टूटा है?’’
‘‘वह कैसे टूटता है?’’ यशोदा ने पूछ लिया है।
उत्तर मैत्रेयी ने दिया, ‘‘इस्लामी शरा के अनुसार पत्नी को तलाक देने का अधिकार नहीं होता। पति ही पत्नी को छोड़ सकता है और पति तीन बार कह दे, मैंने तुम्हें छोड़ा! मैंने तुम्हें छोड़ा!! मैंने तुम्हें छोड़ा!!! तो विवाह टूट गया समझा जाता है।’’
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