लोगों की राय

उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596
आईएसबीएन :9781613011027

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

391 पाठक हैं

खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...

द्वितीय परिच्छेद

1

उमाशंकर को अमेरिका से लौटे तीन महीने के लगभग हो चुके थे। जब उसका क्लीनिक तैयार हुआ तो उसका उद्घाटन बहुत धूमधाम से किया गया। आस-पड़ोस में सबको आमन्त्रित किया गया।

एक निमन्त्रण-पत्र प्रज्ञा के पति मुहम्मद यासीन को भी भेजा गया, परन्तु वहाँ से कोई भी नहीं आया। यहाँ तक कि निमन्त्रण-पत्र डाक से लौ आया था। लिफाफे पर लिखा था ‘अन-नोन’।

अतः जब उद्घाटन हो चुका और मेहमानों को मिठाई दे विदा किया जा चुका तो पिता पुत्र उस दिन के समारोह का मूल्यांकन करने कोठी के ड्राइंगरूम में आ बैठे।

एक बजे का समय था और वे भोजन की प्रतीक्षा में थे। एकाएक उमाशंकर को प्रज्ञा की याद आ गयी। उसने पिता से पूछा लिया, ‘‘पिताजी! प्रज्ञा को निमन्त्रण भेजा था?’’

‘‘भेजा था, परन्तु पत्र बिना डिलिवर किये वापस आ गया है। सम्भव है, वे सब लोग बम्बई चले गये हों।’’ रविशंकर का कहना था।

उमाशंकर का पत्र-व्यवहार कमला से चलता था और कमला का पत्र दो दिन पूर्व आया था। इस कारण निमन्त्रण पत्र ठिकाने पर न पहुँच सकने पर उसे विस्मय हुआ। इस पर भी वह बताना नहीं चाहता था कि वह ज्ञानस्वरूप की बहन से पत्र-व्यवहार कर रहा है। उसने पिताजी से कहा, ‘‘आपने प्रातः बताया होता तो मैं टेलीफोन कर पता करता।’’

‘‘तो अब कर लो। बात यह है कि प्रज्ञा उस छोकरी को साथ लिये घूमती फिरती है। वह बातें करने में बहुत शोख है, परन्तु मुझे उस प्रकार की लड़की बिल्कुल पसन्द नहीं।’’

उमाशंकर पिता के नगीना के विषय में विचारों को जानता था, परन्तु उस पर बहस करने से बचते हुए उसने पूछा, ‘‘तो करूँ उसको टेलीफोन?’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book