लोगों की राय

उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596
आईएसबीएन :9781613011027

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

391 पाठक हैं

खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


‘‘अम्मी! पुलिस स्टेशन का नम्बर देख रही हूँ।’’

‘‘किसलिए?’’

‘‘अब्बाजान को फौजदारी से रोकने के लिए। मगर अभी टेलीफोन नहीं कर रही। अभी तो सिर्फ नम्बर देख रही थी।’’

प्रज्ञा की हँसी निकल गई। उसने हँसते हुए कहा, ‘‘अब्बाजान! इस लड़की की तेज रफ्तार से चलने वाली अक्ल की वजह से ही मैं इसे मुहब्बत करने लगी हूँ।’’

‘‘मैंने इसके लिए बम्बई में एक रिश्ता देखा है।’’

‘‘मैं इसमें दखल नहीं दूँगी। मगर बारात यहाँ दिल्ली में आएगी और शादी इसके भाईजान करेंगे।’’

‘‘तो बहुत रुपये पैदा कर लिए हैं उसने?’’

‘‘क्या पैसे वालों की लड़कियों की ही शादी होती है?’’

‘‘हाँ! अगर दामाद किसी अमीर खानदान का हो तो?’’

‘‘पर अब्बाजान! वह अमीर कहने का ही तो हो सकता है, जो अपने श्वसुर से बहुत बड़ी दहेज की उम्मीद रखता हो?’’

‘‘तुम कंगालों की बेटी क्या जानो!’’

प्रज्ञा हँसी तो कमला भी हँस पड़ी। कमला ने कह दिया, ‘‘भाभी! कंगलों के घर की मिठाई अब्बाजान को खिला दो।’’

‘‘तो ले आओ।’’ प्रज्ञा ने कहा।

अभी तक तो वे कॉफी पी रहे थे। अब सब के सामने प्लेटों में बिस्कुटों के साथ कमला ने बर्फी की एक-एक टुकड़ी रख दी है।’’

‘‘अब्बाजान! यह मेरे डिब्बे की है।’’

‘‘तो तुम प्रज्ञा के पिता के घर से आई हो?’’

इस पर प्रज्ञा और सरस्वती भी हँसने लगीं। अब्दुल हमीद ने पूछ लिया, ‘‘इसमें हँसने की कौन-सी बात है?’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book