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उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
उत्तर प्रज्ञा ने दिया, ‘‘अब्बाजान और पिताजी में कोई फर्क नहीं दिखाई दिया। एक ने अपने लड़के को कहा था कि मुझे पीट-पीटकर घर से निकाल दे और दूसरे ने डाँट-टपट कर घर से निकाल दिया है। मैं दोनों को एक ही किस्म का अमाल समझती हूँ।’’
इस समय पाचक आया और बोला, ‘‘हुजूर! खाना तैयार है।’’
‘‘क्या बनाया है?’’ अब्दुल हमीद ने पूछा।
‘‘बहनजी ने कहा था चिकन बिरियानी।’’
‘‘हाँ! भूख तो लगने लगी है।’’
सरस्वती ने कहा, ‘‘जरा ठहरो! बाबू साहब दुकान से आ रहे हैं। वह भी खायेंगे।’’
पाचक भीचर चला गया। कमला अब पुनः टेलीफोन के पास जा बैठी थी। पुलिस चौकी का नम्बर उसने एक कागज के टुकड़े पर लिख कर अपने सामने रख लिया था।
अब्दुल हमीद ने कहा, ‘‘यह लड़की तो हमें हवालात में भेजने के लिए तैयार बैठी मालूम होती है।’’
कमला हँस पड़ी। उत्तर सरवर ने दिया, ‘‘यह अब मेरी लड़की बन गई है। आप तो इसी यासीन को दे चुके हैं। उसने बीवी बनाने की जगह इसे बहन बना लिया है।’’
इस समय कोठी के बाहर मोटर की आवाज आई तो सेवक द्वार की ओर भागा और ज्ञानस्वरूप का ब्रीफकेस उठा उसका पीछे-पीछे ड्राइंगरूम में आ गया।
सरस्वती ने कहा, ‘‘रमज़ान! खाना लगाओ। हम वहीं आ रहे हैं।’’
‘‘तो आपने अभी खाना नहीं खाया?’’ ज्ञानस्वरूप ने पूछा।
‘‘आइये!’’ प्रज्ञा ने उठते हुए कहा, ‘‘भूखे पेट बातचीत नहीं हो सकती।’’ सब उठकर खाना खाने के कमरे में चले गये।
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