लोगों की राय

उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596
आईएसबीएन :9781613011027

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

391 पाठक हैं

खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


उत्तर प्रज्ञा ने दिया, ‘‘अब्बाजान और पिताजी में कोई फर्क नहीं दिखाई दिया। एक ने अपने लड़के को कहा था कि मुझे पीट-पीटकर घर से निकाल दे और दूसरे ने डाँट-टपट कर घर से निकाल दिया है। मैं दोनों को एक ही किस्म का अमाल समझती हूँ।’’

इस समय पाचक आया और बोला, ‘‘हुजूर! खाना तैयार है।’’

‘‘क्या बनाया है?’’ अब्दुल हमीद ने पूछा।

‘‘बहनजी ने कहा था चिकन बिरियानी।’’

‘‘हाँ! भूख तो लगने लगी है।’’

सरस्वती ने कहा, ‘‘जरा ठहरो! बाबू साहब दुकान से आ रहे हैं। वह भी खायेंगे।’’

पाचक भीचर चला गया। कमला अब पुनः टेलीफोन के पास जा बैठी थी। पुलिस चौकी का नम्बर उसने एक कागज के टुकड़े पर लिख कर अपने सामने रख लिया था।

अब्दुल हमीद ने कहा, ‘‘यह लड़की तो हमें हवालात में भेजने के लिए तैयार बैठी मालूम होती है।’’

कमला हँस पड़ी। उत्तर सरवर ने दिया, ‘‘यह अब मेरी लड़की बन गई है। आप तो इसी यासीन को दे चुके हैं। उसने बीवी बनाने की जगह इसे बहन बना लिया है।’’

इस समय कोठी के बाहर मोटर की आवाज आई तो सेवक द्वार की ओर भागा और ज्ञानस्वरूप का ब्रीफकेस उठा उसका पीछे-पीछे ड्राइंगरूम में आ गया।

सरस्वती ने कहा, ‘‘रमज़ान! खाना लगाओ। हम वहीं आ रहे हैं।’’

‘‘तो आपने अभी खाना नहीं खाया?’’ ज्ञानस्वरूप ने पूछा।

‘‘आइये!’’ प्रज्ञा ने उठते हुए कहा, ‘‘भूखे पेट बातचीत नहीं हो सकती।’’ सब उठकर खाना खाने के कमरे में चले गये।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book