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उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
खाने के लिए मेज पर प्लेटें लगी थीं। सब बैठ गये और अपनी-अपनी प्लेटों में डिशों में से ले-लेकर डालने लगे। अब्दुल हमीद ने बेयरा को कहा, ‘‘तुम बाहर ठहरो। जरूरत होगी तो बुला लेंगे?’’
बेयरा बाहर गया तो अब्दुल हमीद ने बता दिया–‘‘यासीन! मैं तुम सबको बम्बई ले जाने के लिए आया हूँ।’’
‘‘वहाँ क्या है?’’
‘‘मैं अपने काम का तुम्हें मैनेजर बनाना चाहता हूँ।’’
‘‘मगर मैं आपकी तस्करी का काम तो करूँगा नहीं।’’
‘‘वह मैंने अलहदा कर दिया है। उस काम का एक अलहदा मैनेजर मुकर्रर कर दिया है। उसी के भाई के साथ नगीना की शादी की बात हो रही है।’’
‘‘देखिये अब्बाजान! मेरी दुकान पर सवा लाख रुपये से ऊपर का माल रखा है। नित्य छः-सात हजार की बिक्री होती है। दुकान पर पाँच सेल्समैन हैं और एक मैनेजर है। चार हजार रुपये महीने का खर्चा है। साथ ही यह मकान है और फिर आप अपनी जायदाद से फारखती लिखा चुके हैं। इस सबकी मौजूदगी में मैं वहाँ नहीं जा सकूँगा।’’
‘‘मगर यहाँ के इन्तज़ामात मैं कर चुका हूँ। मेरा ख्याल है कि तुम मंजूर करो तो मैं टेलीफोन कर नये मैनेजर को यहाँ बुला सकता हूँ।’’
‘‘कौन है वह?’’
‘‘एक है अनवर अली। वह मेरे दूसरे काम का मैनेजर है और अनवर का एक भाई सआदत अली है। उसे यहाँ तुम्हारे काम पर तैनात कर दूँगा। जो कुछ तुम्हें यहाँ से मिलता है, वह तो मिलेगा ही। सिर्फ सात सौ रुपये महीना असादत के देने पड़ेंगे और तुमको अपने काम का दो हजार रुपये महीना दूँगा।’’
‘‘अब्बाजान! नहीं। जिस काम से और जिस जायदाद से फारखती लिखाई जा चुकी है, उसमें नौकरी नहीं करूँगा।’’
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