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उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘अम्मी! यह हमारी तथा सब देशों की सरकारों को समझ लेना चाहिये कि कितना भी बढ़िया गुप्तचर विभाग और कितना भी बड़ा पुलिस महकमा हो, जनता की संख्या और सामर्थ्य राज से अधिक होती है। इस कारण अपराधों को रोकने का सहसे प्रभावी उपाय जनता को शिक्षा देना है। जब तक लोगों के मन में स्वयं अपराध से ग्लानि नहीं उत्पन्न होती, तब तक यह रुक नहीं सकता। इस कारण अपराधों को रोकने का एक ही उपाय है। वह यह कि शिक्षा में धर्म पालन की रुचि उत्पन्न की जाए। इसमें परमात्मा पर विश्वास सबसे बड़ी बात है।’’
‘‘जब मनुष्य के मन पर यह विश्वास बैठ जाये कि वह कोई भी काम करे, उसको देखने वाला वहाँ कोई सदा उपस्थित होता है और वह उस कर्म का अच्छा अथवा बुरा फल देता ही है तो वह उस कर्म को करने से पूर्व उसके फलाफल पर विचार करेगा ही।’’
‘‘अम्मी! यह बिना परमात्मा पर विश्वास पैदा किए नहीं हो सकता। और यह बात वर्तमान सरकारें कर नहीं रहीं। इसमें कारण यह कि प्रायः सब देशों में शिक्षा में वहाँ की सरकारें हस्तक्षेप करती हैं। क्योंकि सरकार अपने को सैक्यूलर कहती है और सैक्यूलर का अर्थ सरकार समझती है कि परमात्मा का स्वीकार न करना। तभी तो अपने भारत देश के संविधान में परमात्मा के अस्तित्व के विषय में एक शब्द भी नहीं।’’
‘‘संविधान के प्राक्कथन में यह कहा है कि राज्य प्रजातन्त्रात्मक, समाजवादी और सेक्यूलर होगा, परन्तु यह नहीं कहा कि यहाँ परमात्मा को मानने वालों का राज्य होगा।’’
‘‘इस पर तो हिन्दू-मुसलमान लड़ पड़ते?’’
‘‘क्यों? मैं तो समझती हूँ कि हिन्दू-मुसलमान, दोनों परमात्मा को मानते हैं। फिर यह क्यों लड़ पड़ते?’’
बात सरस्वती ने आगे चलायी, ‘‘क्योंकि मुसलमान मानते हैं कि ‘ला इलाहा इलिल्ला मुहम्मद रसूल अल्ला।’’
‘‘परन्तु अम्मी! मैं तो पहली बात मानने के लिए कह रही हूँ, दूसरी नहीं। दूसरी बात कि कोई गुरू नानक को भव-सागर में जहाज कहे अथवा हज़रत मुहम्मद को कहे, इससे सरकार का सरोकार नहीं होना चाहिये।’’
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