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उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
इसका परिणाम यह हुआ कि वहाँ से चलते समय मेरे पास तेरह हजार डालर जमा हो गये थे। उनमें से कुछ का मैंने घर के लिए सामान खरीद लिया और कुछ यहाँ बचाकर ले आया हूँ। उसमें से क्लीनिक फिट होने पर भी अभी बहुत कुछ बचा हुआ है।’’
जब उमाशंकर ने प्रज्ञा को बताया कि माताजी ने सहर्ष उसके निमंत्रण का समर्थन किया है तो सब चलने के लिए तैयार होने लगे। प्रज्ञा, ज्ञानस्वरूप और सरस्वती अपने-अपने कमरों में चले गये। कमला ही वहाँ उमाशंकर के पास बैठी रही।
‘‘कमलाजी! आपको भी तो चलना है?’’ उमाशंकर ने कहा।
‘‘मेरी तो आपके घर जाने की तैयरी मुकम्मिल है।’’
उमाशंकर इस वाक्य में छुपे अर्थ समझ कहने लगा, ‘‘मगर उस घर में आपके स्वागत की तैयारी अभी पूर्ण नहीं है।’’
‘‘क्या बाधा है?’’
‘‘माताजी ने अभी-अभी टेलीफोन में कहा है कि ज्ञानस्वरूप की बहिन को कह देना कि अपनी जबान पर लगाम लगाना सीखे। कारण यह है कि तुम्हारे व्यंग्य पिताजी के मस्तिष्क में खुजली उत्पन्न करने लगते हैं।’’
‘‘परन्तु आपके मस्तिष्क में तो खुजली नहीं होती? मुझे तो आपकी अधिक चिन्ता है।’’
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