उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ प्रारब्ध और पुरुषार्थगुरुदत्त
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प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।
सरकारी सराय बनाने का एक नियत नक्शा था और उसके अनुसार ही भटियारिन की सराय बननेवाली थी।
रामकृष्ण की सम्मति सुन अधिकारी आगरा वापस लौट गया और शहंशाह के सामने उपस्थित हो वह नक्शा दिखाने लगा जो रामकृष्ण ने उसे दिया था।
अकबर कागज देखते ही पहचान गया कि यह वैसा ही कागज है जो विभूतिचरण कुंडलियाँ बनाने के लिए प्रयोग करता है। वह इसका अर्थ समझने का यत्न कर रहा था।
उसे समझ आया कि पंडित आगरा से जाते हुए सराय के मालिक से मिला है और उसे यह नक्शा बनाकर दे गया है।
इस कारण इसमें पंडित का कुछ स्वार्थ का अनुमान लगा अधिकारी को कहने लगा, ‘‘जैसा सराय का मालिक कहे, बना दो।’’
अधिकारी ने निवेदन कर दिया, ‘‘हुज़ूर! इस पर पचास हजार रुपया खर्च बैठ जाएगा।’’
‘‘ठीक है। बनवा दो।’’
‘‘मगर यह सराय नहीं होगी।’’
‘‘तो और क्या होगा?’’
‘‘कह नहीं सकता। मुझे तो इस इमारत का सिर-पैर समझ नहीं आया।’’
अकबर ने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘इसका सिर-पैर नक्शा बनानेवाले से पता करेंगे।’’
‘‘मगर वह तो तीर्थयात्रा पर चला गया है और सराय का मालिक बता रहा था कि तीन महीने में लौटेगा। और हुजूर का हुक्म है कि इमारत पंद्रह दिन में बन जानी चाहिए।’’
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