उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ प्रारब्ध और पुरुषार्थगुरुदत्त
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प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।
जब उसे समझ आया कि प्रसव समीप है तो उसने एक टट्टू भाड़े पर किया और आगरा से चल पड़ी। प्रातः की चली वह मध्याह्नोत्तर ही भटियारिन की सराय के बाहर पहुँच सकी। इस समय उसे प्रसव-पीड़ा होने लगी थी।
उसने सराय देखी और वहीं प्रसव करने का निश्चय कर सराय के बाहर जा खड़ी हुई।
जब करीमखाँ ने नीलम के पीछे रखा पुर्जा अकबर को दिया और बताया कि सराय की भटियारिन सुंदरी की माँ नहीं है तो अकबर पुर्ज़े को पढ़ने का यत्न करने लगा। वह पर्चे को पढ़ नहीं सका और विभूतिचरण के आने की प्रतीक्षा करने लगा। विभूतिचरण ने जब पर्चे का अभिप्राय बताया तो अकबर को चार-पाँच रात कल्याणी के साथ व्यतीत करने की बात स्मरण आ गई। उसने आँख मूँद उस समय की कल्याणी की सूरत-शक्ल याद की तो उसे समझ आया कि वह सुंदरी की प्रतिलिपि ही है। सुंदरी की रूप-राशि का ध्यान कर उसके मन में संदेह नहीं रहा कि उसने अपनी लड़की से ज़िना कर गुनाहे-अज़ीम किया है।
अब वह अपने गुनाह का बदला चुका कर गुनाह से बरी होने की बात पर विचार करने लगा।
जब उसने भटियारिन की सराय के स्थान पर एक विस्तृत इमारत का नक्शा एक ऐसे कागज पर बना देखा जो विभूतिचरण के थैले में पड़े रहते थे तब अकबर को समझ आया कि पंडित को सुंदरी के जन्म के इतिहास का ज्ञान है और वह उसके छुपने के स्थान को जानता है। इसी विचार से उसने अब पंडित को बुलाया था। परंतु विभूतिचरण ने पूजा पर बैठने का बहाना कर दिया। पंडित ने कहला भेजा कि वह तीन महीने तक पूजा पर बैठेगा। यह एक अन्य बात थी जिससे अकबर को संदेह हुआ कि पंडित का रामकृष्ण से गहरा संबंध है। इस पर जब विभूतिचरण का अंतिम उत्तर आया कि सुंदरी मुसीबत में फँसी हुई भटक रही है तो उसे विश्वास हो गया कि पंडित सब कुछ जानता है।
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