उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ प्रारब्ध और पुरुषार्थगुरुदत्त
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प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।
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अकबर ने करीमखाँ को बताया, ‘‘वह नजूमी बदज़न हो गया है। उसे बुलाया था, मगर वह नहीं आया।’’
करीमखाँ ने कहा, ‘‘जहाँपनाह! हुक्म हो तो बाँधकर यहाँ हाजिर कर दूँ।’’
‘‘हाँ। मगर उसे या उसके घरवालों को तंग नहीं करना। हम भटियारिन की सरायवाली बात यहाँ दोहराई जाना पसंद नहीं करते।’’
‘‘हुज़ूर के हुक्म की अदूली नहीं होगी।’’
परिणाम यह हुआ कि करीमखाँ ने पाँच दिन में विभूतिचरण को हथकड़ियों और बेड़ियों से जकड़े हुए सामने उपस्थित कर दिया।
विभूतिचरण हथकड़ी तथा बेड़ियों से बँधा जब अकबर के सामने उपस्थित कर दिया गया तो अकबर ने पंडित की ओर मुस्कराते हुए देख पूछ लिया, ‘‘पंडित जी महाराज! यह क्या सूरत बनाई है?’’
विभूतिचरण ने दो दिन से भोजन, स्नान इत्यादि कुछ नहीं किया था। वह उन्हीं वस्त्रों के साथ पकड़ लाया गया था जो वह पूजा के समय पहने हुए था। वह अपनी अवस्था पर ग्लानि अनुभव कर रहा था। ग्लानि में जलते हुए उसने अकबर के प्रश्न का उत्तर नहीं दिया।
अकबर ने पंडित की दयनीय अवस्था देखी तो हुक्म दिया, ‘‘पंडित जी की हथकड़ियाँ और बेड़ियाँ उतार दी जाएँ।’’
एक अर्दली आया और हथकड़ियाँ और बेड़ियाँ खोल उठाकर ले गया। विभूतिचरण भोजन इत्यादि न करने के कारण दुर्बलता अनुभव करने लगा था। अतः अकबर से पूछे बिना वह उसके सामने भूमि पर बैठ गया।
‘‘क्यों पंडित जी!’’ अकबर ने पूछ लिया, ‘‘कैसा महसूस करते हैं?’’
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