उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
जब एजेण्ट चला गया तो
गजराज ने फाइल निकलवाई। उसने देखा
कि उसमें से डॉक्टर तथा इन्स्पेक्टर की रिपोर्ट गायब थी। शरीफन के
प्रार्थना-पत्र पर चरणदास ने रिमार्क देते हुए लिखा था, ‘‘चूँकि माँग पर
कोई विरोधी रिमार्क नहीं है, इस कारण माँग स्वीकार की जाती है।’’
पश्चात्
शरीफन के हाथों की रसीद थी और उस चैक का नम्बर भी था जिसके द्वारा रुपया
दिया गया था। गजराज इस केस को पकड़कर मारे खुशी के उछल पड़ा। उसने उस फाइल
को अपने ‘पोर्टमेण्ट’ में पर रख लिया और घर को चल दिया। बीस दिन की खोज का
परिणाम, उसका मन-वाञ्छित फल, उसके ‘पोर्टमेण्ट’ में था।
आज जब वह
घर पहुँचा तो लक्ष्मी पति को प्रसन्न-वदन पा विस्मय में उसका मुख देखने
लगी। गजराज ने कहा, ‘‘मैं बहुत खुश हूँ कि मुझको चरणदास की छुट्टी कम नहीं
करनी पड़ी। न ही कोई गलती की बात अभी दफ्तर से बाहर गई है। अब वह आयेगा तो
सारा मामला स्वयं ही निपट लेगा।’’
‘‘ऐसी क्या बात हुई थी,
जिसके कारण आपका मुख सूख गया था?’’
‘‘यों तो बहुत शिकायतें
हैं, परन्तु दस सहस्र रुपये का गबन तो प्रत्यक्ष ही है।’’
‘‘दस सहस्र रुपये का?’’
लक्ष्मी ने आँखें फाड़कर अपने पति की ओर देखते हुए कहा।
‘‘हाँ।’’
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