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उपन्यास >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


: २ :

चरणदास, मोहिनी, संजीव और कस्तूरीलाल स्टेशन पर पहुँचे तो गजराज, लक्ष्मी तथा सुमित्रा और कम्पनी के कई उच्चाधिकारी उनके स्वागत के लिए स्टेशन पर आये हुए थे। कम्पनी के अधिकारियों ने फूलों की मालाएँ पहनाकर चरणदास का स्वागत किया।

कस्तूरीलाल ने जब सुमित्रा को नमस्कार किया तो सुमित्रा ने मुख मोड़ लिया। यह देखकर तो कस्तूरीलाल को बहुत विस्मय हुआ। वह नहीं चाहता था कि स्टेशन पर स्वागतार्थ उपस्थित जन-समुदाय के सम्मुख ही कोई झगड़ा करे। इस कारण वह चुपचाप अपनी माँ से मिलने लगा।

उस दिन सब लोग गजराज की कोठी पर ही रहे। रात को चरणदास अपनी कोठी पर गया तो सुमित्रा उसके साथ चली गई। संजीव कस्तूरी से इतना हिल-मिल गया था कि वह उसके यहाँ ही रह गया।

संजीव इस समय पाँचवी श्रेणी में पढ़ रहा था। वह स्कूल से एक मास का अवकाश लेकर गया हुआ था। अगले दिन वह स्कूल गया तो वहाँ से ले आने के लिए चरणदास की मोटर आई। दूसरी ओर से कस्तूरीलाल अपनी साइकल लेकर उसको ले आने के लिए आया हुआ था। संजीव कस्तूरीलाल के साथ ही चला आया।

कस्तूरीलाल ऐसा अवसर ढूँढ़ रहा था जब वह सुमित्रा से मिलकर उसकी नाराज़गी का कारण जान सके। एक बात तो वह समझ गया था कि उसके पिता को उसके सुमित्रा के साथ सम्बन्ध का संदेह अवश्य है। वह तो सुमित्रा की उदासीनता का कारण जानना चाहता था। संजीव को अपने घर ले जाने से वह आशा करता था कि सुमित्रा उससे मिलने के लिए अवश्य आयेगी। वह भी संजीव से बहुत प्यार करती थी।

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