उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
तत्पश्चात् वह कस्तूरीलाल
को लेकर अपने कमरे में चला गया और उसको
कम्पनी की सील तथा अन्य अधिकारी-मुद्राएँ देकर रसीद ले ली। तदुपरान्त उसको
बधाई देता हुआ वह वहाँ से विदा हो गया।
जब चरणदास चला गया तो
गजराज ने कस्तूरीलाल को अपने कमरे में बुलाकर कहा, ‘‘देखो कस्तूरीलाल,
चरणदास ने ऐसा काम किया है कि वह स्वयं तो कैद होता ही, साथी ही मुझको
पकड़वा देता। कदाचित् सरकार कम्पनी को भी खत्म कर देती। इस कारण मुझे यह
कड़ा पग उठाना पड़ा है। अब तुमको भी एक बात बताना चाहता हूँ। वह यह कि
तुम्हारा विवाह चरणदास की लड़की से नहीं होगा।’’
‘‘यह आपको किसने बताया
है?’’
‘‘किसी
ने भी हो। यह मेरा हुक्म है। एक ओर सुमित्रा है और दूसरी ओर हम तथा हमारी
सम्पत्ति। दोनों में से जो चाहो चुन लो। यदि मेरे साथ रहोगे तो जो मुझसे
मिलने वाला है, वह तो पृथक रहा, तुम स्वयं भी इस कम्पनी के सहारे लाखों के
स्वामी बन जाओगे। मैं यह सब-कुछ सुमित्रा को भोगने नहीं दूँगा।’’
‘‘यह तो आप मेरे साथ
अन्याय कर रहे हैं।’’
‘‘क्या अन्याय कर रहा
हूँ?’’
‘‘आप मुझे अपनी प्रेमिका
को किसी दूसरे के हवाले करने के लिए कह रहे है।’’
‘‘यह ठीक है। परन्तु क्या
इस कठोरता का विनिमय तुम इस पदवी को उचित नहीं समझते?’’
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