लोगों की राय

उपन्यास >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

377 पाठक हैं

दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


गजराज विचार कर रहा था कि वह अब इस पत्र और चैक की क्या सफाई दे। जब उसको कुछ नहीं सूझा तो वह कमरे से बाहर हो गया। अपने कमरे में जा उसने सिगरेट-लाइटर जलाकर चैक को जला दिया और राख को स्नानागार के सिंक में फेंक, ऊपर नल छोड़ दिया। इस प्रकार उस पत्र का चिह्न तक मिटाकर वह विचार करने लगा कि यह पत्र लक्ष्मी को किसने दिया है। अवश्य ही मोहिनी ने दिया होगा और मोहिनी को चरणदास ने दिया होगा। चरणदास ने उसके दफ्तर से चोरी किया होगा। इतना विचार कर वह सोचने लगा कि चरणदास महा-बदमाश है। उसको अभी और नीचा दिखाना चाहिए।

लक्ष्मी जब रो-धोकर शान्त हुई तो वह उठी और बैठे-बैठे मन में विचार करने लगी कि अपने पति का बहिष्कार कर देना चाहिए, वह पर स्त्री-गामी पति को अपनी शैया पर पग भी नहीं रखने देगी। जब तक उसका पति अपने कुकर्म करने के लिए प्रायश्चित्त नहीं कर लेता तब तक उससे पृथक् ही रहेगी।

मध्याह्न के भोजन का समय हुआ तो वह उठी। मुँह-हाथ धो डाइनिंग हाल में जा पहुँची। वहाँ कस्तूरीलाल और उसका पिता पहले ही बैठे थे। लक्ष्मी के पहुँचते ही भोजन परोसा गया। यहाँ अपने लड़के के सम्मुख लक्ष्मी ने कुछ कहना उचित नहीं समझा। गजराज को भी इस समय उस घटना पर चर्चा चलाने से कोई लाभ नहीं प्रतीत हो रहा था। इस कारण सभी चुपचाप भोजन करने लगे।

भोजन करते समय गजराज ने बताया, ‘‘मनसाराम से आज फोन पर कस्तूरी के विवाह के विषय पर बातचीत हुई है। वह चाहता है कि यदि आगामी बुधवार को विवाह हो जाय तो ठीक है।

‘‘हम बुधवार को बरात लेकर सायं सात बजे उसके घर पहुँचेंगे। साढ़े सात बजे खाना खाना होगा। नौ बजे विवाह आरम्भ होगा और बारह बजे विवाह समाप्त हो जायगा। दूसरे दिन प्रातःकाल आठ बजे डोली की विदाई होगी। ठीक है?’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book