उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
|
10 पाठकों को प्रिय 377 पाठक हैं |
दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
दूसरी ओर सुमित्रा व
कस्तूरीलाल का मेल-जोल रहता था।
कस्तूरीलाल का अपने मामा तथा मामी से अधिक स्नेह प्रतीत होता था और वह
प्रायः उनकी कोठी में ही रहा करता था।
चरणदास अब सी० डी० कपूर
अथवा कपूर साहब के नाम से विख्यात हो गया था। कपूर साहब की पत्नी मोहिनी
देवी भी अब क्लब जाया करती थी और नई दिल्ली के प्रतिष्ठित समाज में उसको
स्थान प्राप्त हो गया था।
गजराज को गर्व था कि उसने
चरणदास को
सीताराम बाज़ार की गन्दी गलियों से निकालकर नई दिल्ली के सभ्य समाज में ला
खड़ा कर दिया था। लक्ष्मी अपने भाई की इतनी प्रतिष्ठा देख, अपने पति को
अपने किये का बखान करते सुन गद्गद हो जाया करती थी। दोनों परिवारों में
मोहिनी ही एक ऐसी थी जिसका मन कुछ संतुलित था। कभी चरणदास उसको बताता कि
यह सब भगवान की कृपा है। ‘इस वर्ष उसके पास पाँच लाख की सम्पत्ति है।
उसमें से तीन लाख के मोहिनी के नाम से रिज़र्व बैंक के बांड खरीद लिये गए
हैं। शेष एक लाख के चीनी मिल के हिस्से खरीद लिए गए हैं। प्रतिमास की आय
पाँच सहस्र से अधिक ही होती है। चीनी मिल का लाभ साठ हज़ार रुपये वार्षिक
हो जाता है।’
मोहिनी कहती, ‘‘यह तो ठीक
है। धन का भोग करने में
बहुत आनन्द आता है। जब दो सहस्र रुपये की साड़ी पहनकर मैं क्लब में जाती
हूँ और वहाँ पर विद्यमान सभी महिलाएँ मेरी साड़ी का निरीक्षण करने लगती
हैं, तो मुझे उस प्रशंसा से बहुत प्रसन्नता होती है। आप पर तथा जीजाजी पर
मैं गर्व करती नहीं थकती। परन्तु कभी-कभी मेरे हृदय में एक टीस भी उठा
करती है। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि कहीं कुछ धोखाधड़ी हो रही है। इस
विचार के आते ही मुझे कँपकँपी आने लगती है। भय के मारे शरीर से पसीना
छूटने लगता है।’’
‘‘क्यों, तुम्हें किस बात
का भय है?’’
|