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उपन्यास >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


उसने भूल यह की कि अपनी रिपोर्ट का भावार्थ शरीफन को बता दिया। साथ ही कम्पनी के चीफ डायरेक्टर का नाम-धाम भी बता दिया। मैनेजिंग डायरेक्टर का नाम सुना तो शरीफन की जान-में-जान आ गई। वह दिल्ली जा पहुँची। गजराज दक्षिण की तरफ दौरे पर गया हुआ था। उसकी अनुपस्थिति में उसकी चरणदास से भेंट हो गई।

‘‘जब गजराज दौरे से लौटा तो शरीफन ने एस्प्लेनेड रोड वाले मकान का पता देकर लिखा, ‘‘आपके दिये हुए जरिये से मैंने दिल्ली में यह मकान ले लिया है। मुझको महीने में एकाध दिन खिदमत में रहने से इतमीनान नहीं होता था। इसलिए यहाँ आ गई हूँ। उम्मीद है कि यहाँ आप जल्दी-जल्दी मिल जाया करेंगे।’’

शरीफन अपनी चतुराई से एक वर्ष तक चरणदास और गजराज से मिलती रही। परन्तु अन्त में यह चतुराई असफल रही। चरणदास ने अपने मन में यह निश्चय कर लिया था कि वह शरीफन को अपने घर ले जाकर रखेगा। घर पर झूठ बोल-बोलकर वह ऊब गया था। अब वह पहले गजराज को अपने अनुकूल कर लेना चाहिए था। इसी विचार से उसने अपने शरीफन से संबंध की बात गजराज को बता दी थी।

गजराज ने जब शरीफन द्वारा दगा दिए जाने की बात सुनी तो वह उसकी चिकनी-चुपड़ी बातों को स्मरण कर उसको मार डालने का विचार करने लगा। परन्तु फिर उसने इस विचार को छोड़ दिया और शरीफ़न से सम्बन्ध विच्छेद की बात सोचने लगा। वह मन में निश्चय कर बैठा था कि शरीफन को चरणदास के लिए छोड़ देगा।

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