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नाटक-एकाँकी >> चन्द्रहार (नाटक) चन्द्रहार (नाटक)प्रेमचन्द
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‘चन्द्रहार’ हिन्दी के अमर कथाकार प्रेमचन्द के सुप्रसिद्ध उपन्यास ‘ग़बन’ का ‘नाट्य–रूपांतर’ है
(दोनों एक दूसरे को देखते हैं, मुस्कुराते हैं, जय– जयकार बढ़ती है और दूर जाती है।)
दारोगा—यह सब इस देवीदीन और जालपा देवी की करतूत है। मैं तो जा रहा हूँ, पर रमानाथ भी दरोग– बयानी में बचेगा नहीं। अभी तो मुझे बयान देने बाकी हैं। बच्चा को समझूँगा।
(तेजी से अंदर जाता है। सिपाही आते– जाते हैं और परदा गिरता है।)
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