उपन्यास >> चंद्रकान्ता चंद्रकान्तादेवकीनन्दन खत्री
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चंद्रकान्ता पुस्तक का ई-संस्करण
दूसरा बयान
मामूल के मुताबिक वक़्त पर महाराज ने दरबार किया। कुमार और तेजसिंह भी हाज़िर हुए। आज का दरबार बिल्कुल सुस्त और उदास था, मगर कुमार ने लड़ाई पर जाने के लिए महाराज से इजाजत ले ली और वहां से चले गये। महाराज भी उदासी की हालत में उठ के महल में चले गये। यह तो निश्चय हो गया कि चन्द्रकान्ता और चपला जीती हैं मगर कहां हैं, किस हालत में हैं, सुखी हैं या दुःखी, इन सब बातों का खयाल करके महल में महारानी से लेकर लौंडी तक सब उदास थीं, सभी की आंखों से आंसू ज़ारी थे, खाने-पीने की किसी को फिक्र न थी, एक चन्द्रकान्ता का ध्यान ही सभी का काम था। महाराज जब महल में गये, महारानी ने पूछा कि ‘‘चन्द्रकान्ता का पता लगाने की कुछ फिक्र की गई?’’
महाराज ने कहा, ‘‘हां, तेजसिंह खोज में जाते हैं, उनसे ज़्यादा पता लगाने वाला कौन है, जिससे कहूँ मैं? वीरेन्द्रसिंह भी इस वक़्त मुझसे लड़ाई पर जाने के लिए विदा हो गये, अब देखो क्या होता है?’’
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