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चन्द्रकान्ता सन्तति - 4

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :256
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8402
आईएसबीएन :978-1-61301-029-7

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चन्द्रकान्ता सन्तति - 4 का ई-पुस्तक संस्करण...

सातवाँ बयान


किस्मत जब चक्कर खिलाने लगती है, तो दम-भर भी सुख की नींद सोने नहीं देती। इसकी बुरी निगाह के नीचे पड़े हुए आदमी को तभी कुछ निश्चिन्ती होती है, जब इसका पूरा दौर (जो कुछ करना हो करके) बीत जाता है। इस किस्से को पढ़कर पाठक इतना तो जान ही गये होंगे कि इन्द्रदेव भी सुर्खियों में गिने जाने लायक नहीं हैं। वह भी जमाने के हाथों से अच्छी तरह सताया जा चुके हैं, परन्तु उस जवामर्द की आँखों में बहुत-सी रातें उन दिनों की भी बीत चुकी हैं, जबकि उसका मजबूत दिल कई तरह की खुशियों से नाउम्मीद होकर ‘हरिइच्छा’ का मन्त्र जपता हुआ एक तरफ से बेफिक्र हो बैठा था। मगर आज उसके आगे फिर बड़ी दुःखदाई घड़ी पहिले से बड़ा दूना विकराल रूप धारण करके आ खड़ी हुई है। इतने दिन तक कि वह यह समझकर कि उसकी स्त्री और लड़की इस दुनिया से कूच कर गयीं, सब्र करके बैठा हुआ था, लेकिन जबसे उसे अपनी स्त्री और लड़की के इस दुनिया में मौजूद रहने का कुछ हाल और आपुस वालों की बेईमानी का पता मालूम हुआ है, तबसे अफसोस रंज और गुस्से से उसके दिल की अजब हालत हो रही है।

लक्ष्मीदेवी, कमलिनी और लाडिली को समझा-बुझाकर जब इन्द्रदेव बलभद्रसिंह को छुड़ाने की नीयत से जमानिया की तरफ रवाना हुए तो पहाड़ी के नीचे पहुँचकर, उन्होंने अपने अस्तबल से एक उम्दा घोड़ा खोला और उस पर सवार हो पाँच-ही-सात कदम आगे बढ़े थे कि राजा गोपालसिंह का भेजा हुआ एक सवार आ पहुँचा, जिसने सलाम करके एक चीठी उनके हाथ में दी और उन्होंने खोल कर पढ़ा।

इस चीठी में राजा गोपालसिंह ने यह लिखा था ‘‘यह सुनकर आपको बड़ा आश्चर्य होगा कि आज-कल इन्दिरा मेरे घर में और उसकी माँ भी जीती है, जो यद्यपि तिलिस्म में फँसी हुई है, मगर उसे अपनी आँखों से देख आया हूँ। अस्तु, आप पत्र पढ़ते ही अकेले मेरे पास चले आइये।’’

इस चीठी को पढ़कर इन्द्रदेव कितनी खुश हुए होंगे, यह हमारे पाठक स्वयं समझ सकते हैं। अस्तु, वे तेजी के साथ जमानिया की तरफ रवाना हुए और समय से पहले ही जमानिया को जा पहुँचे। जब राजा गोपालसिंह को उनके आने की खबर हुई तो वे दरवाजे तक आकर बड़ी मुहब्बत से इन्द्रदेव को घर के अन्दर ले गये और गले से मिलकर अपने पास बैठाया, तथा इन्दिरा को बुलवा भेजा। जब इन्दिरा को अपने पिता के आने की खबर मिली, दौड़ती हुई राजा गोपालसिंह के पास आयी और अपने पिता के पैरों पर गिरकर रोने लगी। इस समय कमरे के अन्दर राजा गोपालसिंह इन्द्रदेव और इन्दिरा के सिवाय और कोई भी न था। कमरा एकान्त कर दिया गया, यहाँ तक की जो लौड़ी इन्दिरा को बुलाकर लायी थी, वह भी बाहर कर दी गयी थी।

इन्दिरा के रोने ने राजा गोपालसिंह और इन्द्रदेव का कलेजा भी हिला दिया और वे दोनों भी रोने से अपने को बचा न सके। आखिर उन्होंने बड़ी मुश्किल से अपने को सम्हाला और इन्दिरा को दिलासा देने लगे। थोड़ी देर बाद, जब इन्दिरा का जी ठिकाने हुआ तो इन्द्रदेव ने उसका हाल पूछा और उसने अपना दर्दनाक किस्सा कहना शुरू किया।

इन्दिरा का हाल जो कुछ ऊपर बयान में लिख चुके हैं, वह और उसके बाद का अपना तथा अपनी माँ का बचा हुआ किस्सा भी इन्दिरा ने बयान किया, जिसे सुनकर इन्द्रदेव की आँखें खुल गयीं, और उन्होंने एक लम्बी साँस लेकर कहा–

‘‘अफसोस, हरदम साथ रहनेवालों की जब यह दशा है तो किस पर विश्वास किया जाय! खैर, कोई चिन्ता नहीं।’’

गोपाल : मेरे प्यारे दोस्त, जो कुछ होना था सो हो गया, अब अफसोस करना वृथा है। क्या मैं उन राक्षसों से कुछ कम सताया गया हूँ?  नहीं, ईश्वर न्याय करनेवाला है और तुम देखोगे कि उनका पाप उन्हें किस तरह खाता है। रात बीत जाने पर मैं इन्दिरा की माँ से भी तुम्हारी मुलाकात कराऊँगा। अफसोस दुष्ट दारोगा ने उसे ऐसी जगह पहुँचा दिया है कि जहाँ से वह स्वयं तो निकल ही नहीं सकती, मैं खुद तिलिस्म का राजा कहलाकर भी उसे छुड़ा नहीं सकता लेकिन अब कुँअर इन्द्रजीतसिंह वह तिलिस्म तोड़ रहे हैं, आशा है कि वह बेचारी भी बहुत जल्द इस मुसीबत से छूट जायगी।

इन्द्रदेव : क्या इस समय मैं उसे नहीं देख सकता?

गोपाल : नहीं, यदि दोनों कुमार तिलिस्म तोड़ने में हाथ न लगा चुके होते तो शायद मैं ले भी चलता, मगर अब रात के वक्त वहाँ जाना असम्भव है!

जिस समय इन्द्रदेव और गोपालसिंह की मुलाकात हुई थी, चिराग जल चुका था। यद्यपि इन्दिरा ने अपना किस्सा संक्षेप में बयान किया था, मगर फिर भी इस काम में डेढ़ पहर का समय बीत गया था। इसके बाद राजा गोपालसिंह ने अपने सामने इन्द्रदेव को खिलाया और इन्द्रदेव ने अपना तथा रोहतासगढ़ का हाल कहना शुरू किया, तथा इस समय तक जो मामले हो चुके थे, सब खुलासा बयान किया। तमाम रात बातचीत में बीत गयी और सवेरा होने पर जरूरी कामों से छुट्टी पाकर, तीनों आदमी तिलिस्म के अन्दर जाने के लिए तैयार हुए।

इस जगह हमें यह कह देना चाहिए कि इन्दिरा को तिलिस्म के अन्दर से निकालकर अपने घर में ले आना राजा गोपालसिंह ने बहुत गुप्त रक्खा था और ऐयारी के ढंग पर उसकी सूरत भी बदलवा दी थी।

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