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ग़बन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :544
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8444
आईएसबीएन :978-1-61301-157

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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव


रमा ने फिर उसके हाथ से कागज़ छीनने की कोशिश नहीं की। उसे जान पड़ा, आसमान फट पड़ा है, मानो कोई भयंकर जन्तु उसे निगलने के लिए बढ़ा चला जाता है। वह धड़-धड़ करता हुआ ऊपर से उतरा और घर के बाहर निकल गया। कहाँ अपना मुँह छिपा ले? कहाँ छिप जाये कि कोई उसे देख न सके? उसकी दशा वही थी, जो किसी नंगे आदमी की होती है। वह सिर पर पाँव तक कपड़े पहने हुए भी नंगा था। आह ! सारा परदा खुल गया ! उसकी सारी कपट-लीला खुल गयी ! जिन बातों को छिपाने की उसने इतने दिनों चेष्टा की, जिनको गुप्त रखने के लिए उसने कौन-कौन सी कठिनाइयाँ नहीं झेलीं, उन सबों ने आज मानो उसके मुँह पर कालिख पोत दी। वह अपनी दुर्गति अपनी आँखों से नहीं देख सकता। जालपा की सिसकियाँ, पिता की झिड़कियाँ, पड़ोसियों की कनफुसियाँ सुनने की अपेक्षा मर जाना कहीं आसान होगा। जब कोई संसार में न रहेगा, तो उसे इसकी क्या परवाह होगी, कोई उसे क्या कह रहा है। हाय ! केवल तीन सौ रुपयों के लिए उसका सर्वनाश हुआ जा रहा है; लेकिन ईश्वर की इच्छा है, तो वह क्या कर सकता है। प्रियजनों की नज़रों से गिरकर जिये तो क्या जिये !

जालपा उसे कितना नीच, कितना कपटी, कितना धूर्त, कितना गपोड़िया, समझ रही होगी। क्या वह अपना मुँह उसे दिखा सकता है?

क्या संसार में कोई ऐसी जगह नहीं है, जहाँ वह नये जीवन का सूत्रपात कर सके, जहाँ वह संसार से अलग-अलग सबसे मुँह मोड़कर अपना जीवन काट सके। जहाँ वह इस तरह छिप जाये, कि पुलिस उसका पता न पा सके। गंगा की गोद के सिवा ऐसी जगह और कहाँ थी। अगर जीवित रहा, महीने दो महीने में अवश्यक ही पकड़ लिया जायेगा। उस समय उसकी क्या दशा होगी–वह हथकड़ियाँ और बेड़ियाँ पहने अदालत में खड़ा होगा। सिपाहियों का एक दल उसके ऊपर सवार होगा। सारे शहर के लोग उसका तमाशा देखने जायेंगे। जालपा भी जायेगी। रतन भी जायेगी। उसके पिता सम्बन्धी मित्र अपने पराये सभी भिन्न-भिन्न भागों से उसकी दुर्दशा का तमाशा देखेंगे। नहीं अपनी मिट्टी यों न खराब करेगा, न कहेगा। इससे कहीं अच्छा है कि वह डूब मरे !

मगर फिर खयाल आया कि जालपा किसकी होकर रहेगी ! हाय मैं अपने साथ उसे भी ले डूबा ! बाबू जी और अम्मा जी तो रो-धोकर सब्र कर लेंगे; पर उसकी रक्षा कौन करेगा? क्या वह छिपकर नहीं रह सकता? क्या शहर से दूर किसी छोटे-से गाँव में वह अज्ञातवास नहीं कर सकता? सम्भव है, कभी जालपा को उस पर दया आये, उसके अपराधों को क्षमा कर दे। सम्भव है उसके पास धन भी हो जाये; पर यह असम्भव है कि वह उसके सामने आँखें सीधी कर सके। न जाने इस समय उसकी क्या दशा होगी ! शायद मेरे पत्र का आशय समझ रही हो। शायद परिस्थिति का उसे कुछ ज्ञान हो गया हो। शायद उसने अम्मा को मेरा पत्र दिखाया हो और दोनों घबराती हुई मुझे खोज रही हों। शायद पिताजी को बुलाने के लिए लड़कों को भेजा गया हो। कदाचित् मौत को देखकर भी वह इस समय इतना भयभीत न होता, जितना किसी परिचित को देखकर ! आगे पीछे चौकन्नी आँखों से ताकता हुआ, वह उस जलती हुई धूप में चला जा रहा था–कुछ खबर न थी किधर। सहसा रेल की सीटी सुनकर वह चौंक पड़ा। अरे मैं इतनी दूर निकल आया? रेलगाड़ी सामने खड़ी थी। उसे उस पर बैठ जाने की प्रबल इच्छा हुई, मानों उसमें बैठते ही वह सारी बाधाओं से मुक्त हो जायेगा; मगर जेब में रुपये न थे। उँगली में अँगूठी पड़ी हुई थी। उसने कुलियों के जमादारों को बुलाकर कहा कहीं यह अँगूठी बिकवा सकते हो? एक रुपया तुम्हें दूँगा। मुझे गाड़ी में जाना है। रुपये लेकर घर से चला था, पर मालूम होता है, कहीं गिर गये। फिर लौटकर जाने में गाड़ी न मिलेगी और बड़ा भारी नुकसान हो जायेगा।

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