उपन्यास >> ग़बन (उपन्यास) ग़बन (उपन्यास)प्रेमचन्द
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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव
जमादार ने उसे सिर से पाँव तक देखा, अँगूठी ली और स्टेशन के अन्दर चला गया। रमा टिकट-घर के सामने टहलने लगा। आँखें उसकी ओर लगी हुई थीं। दस मिनट गुज़र गये और जमादार का कहीं पता नहीं। अँगूठी लेकर कहीं गायब तो नहीं हो जायेगा। स्टेशन के अन्दर जाके उसे खोजने लगा। एक कुली से पूछा। उसने पूछा–जमादार का नाम क्या है? रमा ने जबान दाँतों से काट ली। नाम तो पूछा ही नहीं। बतलाये क्या? इतने में गाड़ी ने सीटी दी, रमा अधीर हो उठा। समझ गया जमादार ने चरका दिया। बिना टिकट लिये ही गाड़ी में आ बैठा। मन में निश्चय कर लिया, साफ कह दूँगा मेरे पास टिकट नहीं है। अगर उतरना ही पड़ा, तो यहाँ से दस-पाँच कोस तो चला ही जाऊँगा।
गाड़ी चल दी, उस वक्त रमा को अपनी दशा पर रोना आ गया। हाय, न जाने उसे कभी लौटना नसीब भी होगा या नहीं। फिर यह सुख के दिन कहाँ मिलेंगे। यह दिन तो गये हमेशा के लिए गये। इसी तरह सारी दुनिया से मुँह छिपाये, वह एक दिन मर जायेगा। कोई उसकी लाश पर आँसू बहाने वाला भी न होगा। घर वाले भी रो-धोकर चुप हो रहेंगे। केवल थोड़े से संकोच के कारण उसकी यह दशा हुई। उसने शुरू ही से जालपा, से अपनी सच्ची हालत कह दी होती, तो आज उसे मुँह पर कालिख लगाकर क्यों भागना पड़ता। मगर कहता कैसे, वह अपने को अभागिनी न समझने लगती? कुछ न सही, कुछ दिन तो उसने जालपा को सुखी रक्खा। उसकी लालसाओं की हत्या तो न होने दी रमा के सन्तोष के लिए अब इतना ही काफी था।
अभी गाड़ी को चले दस मिनट भी न बीते होंगे। गाड़ी का दरवाजा खुला, और टिकट बाबू अन्दर आये। रमा के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं। एक क्षण में वह उसके पास आ जायेगा। इतने आदमियों के सामने उसे कितना लज्जित होना पड़ेगा। उसके कलेजा धक-धक करने लगा। ज्यों-ज्यो टिकट बाबू उसके समीप आता था, उसकी नाड़ी की गति तीव्र होती जाती थी। आखिर बला सिर पर आ ही गयी। टिकट बाबू ने पूछा आपका टिकट?
रमा ने जरा सावधान होकर कहा–मेरा टिकट तो कुलियों के जमादार के पास ही रह गया। उसे टिकट के लिए रुपये दिये थे। न जाने किधर निकल गया।
टिकट बाबू को यकीन न आया, बोला–मैं यह कुछ नहीं जानता। आपको अगले स्टेशन पर उतरना होगा। आप कहाँ जा रहे हैं?
रमानाथ–सफर तो बड़ी दूर का है, कलकत्ते तक जाना है।
टिकट बाबू–आगे के स्टेशन पर टिकट ले लीजिएगा।
रमानाथ–यही तो मुश्किल है। मेरे पास पचीस का नोट था। खिड़की पर बड़ी भीड़ थी। मैंने नोट उस जमादार को टिकट लाने के लिए दिया; पर वह ऐसा गायब हुआ कि लौटा ही नहीं। शायद आप उसे पहचानतें हों। लम्बा-लम्बा चेचक-रु आदमी है।
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