उपन्यास >> ग़बन (उपन्यास) ग़बन (उपन्यास)प्रेमचन्द
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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव
जालपा–नहीं दफ्तर नहीं गये। पहले वहाँ से एक चपरासी पूछने आया था।
यह कहती हुई वह ऊपर चली गयी, बचे हुए रुपये सन्दूक में रक्खे और पंखा झलने लगी। मारे गरमी के देह फुँकी जा रही थी; लेकिन कान द्वार की ओर लगे थे। अभी तक उसे इसकी जरा भी आशंका न थी कि रमा ने विदेश की राह ली है।
चार बजे तक तो जालपा को विशेष चिन्ता न हुई, लेकिन ज्यों-ज्यों दिन ढलने लगा, उसकी चिन्ता बढ़ने लगी। आखिर वह सबसे ऊँची छत पर चढ़ गयी, हालाँकि उसके जीर्ण होने के कारण कोई ऊपर नहीं आता था, और वहाँ चारों तरफ नजर दौड़ायी। लेकिन रमा किसी तरफ से आता दिखायी न दिया।
जब सन्ध्या हो गयी और रमा घर न आया, तो जालपा का जी घबड़ाने लगा। कहाँ चले गये? वह बिना दफ्तर से घर आये कहीं बाहर न जाते थे। अगर किसी मित्र के घर होते, तो क्या अब तक न लौटते? मालूम नहीं, जेब में कुछ है भी या नहीं। बेचारे दिन भर से न मालूम कहाँ भटक रहे होंगे। वह फिर पछताने लगी कि उनका पत्र पढ़ते ही उसने क्यों न हार निकाल कर दे दिया। क्यों दुविधा में पड़ गयी। बेचारे शर्म के मारे घर न आते होंगे। कहाँ जाय? किससे पूछे?
चिराग जल गये, तो उससे न रहा गया। सोचा, शायद रतन से कुछ पता चले। उसके बँगले पर गयी तो मालूम हुआ, आज तो वह इधर आये ही नहीं।
जालपा ने उन सभी पार्कों और मैदानों को छान डाला, जहाँ रमा के साथ वह बहुधा घूमने आया करती थी, और नौ बजते-बजते निराश लौट आयी। अब तक उसने अपने आँसुओं को रोका था; लेकिन घर में कदम रखते ही जब उसे मालूम हो गया कि अब तक वह नहीं आये, तो वह हताश होकर बैठ गयी। उसकी यह शंका अब दृढ़ हो गयी कि वह जरूर कहीं चले गये। फिर भी कुछ आशा थी कि शायद मेरे पीछे आये हों और फिर चले गये हों। जाकर जागेश्वरी से पूछा–वह घर आये थे, अम्माजी?
जागेश्वरी–यार-दोस्तों में बैठे कहीं गपशप कर रहे होंगे। घर तो सराय है। दस बजे घर से निकले थे, अभी तक पता नहीं।
जालपा–दफ्तर से घर आकर तब कहीं जाते थे। आज तो आये नहीं। कहिए तो गोपी बाबू को भेज दूँ। जाकर देखें, कहाँ रह गये।
जागेश्वरी–लड़के इस वक्त कहाँ देखने जायेंगे। उनका क्या ठीक है। थोड़ी देर और देख लो, फिर खाना उठाकर रख देना। कोई कहाँ तक इंतजार करे?
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