उपन्यास >> ग़बन (उपन्यास) ग़बन (उपन्यास)प्रेमचन्द
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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव
रमानाथ ने सीनाजोरी के भाव से कहा–हमार नाम पूछकर क्या करोगे? मैं क्या चोर हूँ?
‘चोर नहीं, तुम साह हो, नाम क्यों नहीं बताते?’
रमा ने एक क्षण आगा-पीछा में पड़कर कहा–हीरालाल
‘घर कहाँ है?’
‘घर !’
‘हाँ, घर ही पूछते हैं।’
‘शाहजहाँपुर।’
‘कौन मुहल्ला?’
रमा शहजहाँपुर न गया था, न कोई कल्पित नाम ही उसे याद आया कि बता दे। दुस्साहस के साथ बोला–तुम तो मेरा हुलिया लिख रहे हो !
कांस्टेबल ने भबकी दी–तुम्हारा हुलिया पहले से ही लिखा हुआ है ! नाम झूठ बताया, सकूनत झूठ बतायी, मुहल्ला पूछा तो बगलें झाकने लगे। महीनों से तुम्हारी तलाश हो रही है, आज जाकर मिले हो। चलो थाने पर।
यह कहते हुए उसने रमानाथ का हाथ पकड़ लिया। रमा ने हाथ छुड़ाने की चेष्टा करके कहा–वारंट लाओ तब हम चलेंगे। क्या मुझे कोई देहाती समझ लिया है?
कांस्टेबल ने एक सिपाही से कहा–पकड़ लो जी इनका हाथ, वहीं थाने पर वारंट दिखाया जायेगा।
शहरों में ऐसी घटनाएँ मदारियों के तमाशों से भी ज्यादा मनोरंजक होती हैं। सैकड़ो आदमी जमा हो गये। देवीदीन इसी समय अफीम लेकर लौटा आ रहा था, यह जमाव देखकर वह भी आ गया। देखा कि तीन कांस्टेबल रमानाथ को घसीटे लिये जा रहे हैं। आगे बढ़कर बोला–हैं हैं जमादार !, यह क्या करते हो? यह पण्डित जी तो हमारे मिहमान हैं, इन्हें कहाँ पकड़े लिये जाते हो?
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