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ग़बन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :544
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8444
आईएसबीएन :978-1-61301-157

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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव


रमा को इस समय अपने कपट-व्यवहार पर बड़ी ग्लानि हो रही थी। जालपा ने कमरे से लौटकर प्रेमोल्लसित नेत्रों से उसकी ओर देखा, तो उसने मुँह फेर लिया। उस सरल विश्वास से भरी हुई आंखों के सामने वह ताक न सका। उसने सोचा–मैं कितना बड़ा कायर हूँ। क्या मैं बाबूजी को साफ़-साफ़ जवाब न दे सकता था? मैंने हामी ही क्यों भरी? क्या जालपा से घर की दशा साफ-साफ कह देना मेरा कर्तव्य न था? उसकी आँखें भर आयीं। जाकर मुँडेर के पास खड़ा हो गया। प्रणय के उस निर्मल प्रकाश में उसका मनोविकार किसी भयंकर जन्तु की भाँति घूरता हुआ जान पड़ता था। उसे अपने ऊपर इतनी घृणा हुई कि एक बार जी में आया, सारा कपट-व्यापार खोल दूँ; लेकिन सँभल गया। कितना भयंकर परिणाम होगा। जालपा की नजरों से गिर जाने की कल्पना ही उसके लिए असह्य थी।

जालपा ने प्रेम-सरस नेत्रों से देखकर कहा–मेरे दादाजी तुम्हें देखकर गये और अम्माजी से तुम्हारा बखान करने लगे, तो मैं सोचती थी, कि तुम कैसे होगे। मेरे मन में तरह-तरह के चित्र आते थे।

रमानाथ ने एक लम्बी साँस खींची। कुछ जवाब न दिया।

जालपा ने फिर कहा–मेरी सखियाँ तुम्हें देखकर मुग्ध हो गयीं। शहजा़दी तो खिड़की के सामने से हटती ही न थी। तुमसे बातें करने की बड़ी इच्छा थी। जब तुम अन्दर गये थे तो उसी ने तुम्हें पान के बीड़े दिये थे, याद है?

रमा ने कोई जवाब न दिया।

जालपा–अजी, वही जो रंग-रूप में सबसे अच्छी थी, जिसके गाल पर एक तिल था, तुमने उसकी ओर बड़े प्रेम से देखा था, बेचारी लाज के मारे गड़ गयी थी। मुझसे कहने लगी, जीजा तो बड़े रसिक जान पड़ते हैं। सखियों ने उसे खूब चिढ़ाया, बेचारी रुआँसी हो गयी। याद है?

रमा ने मानो नदी में डूबते हुए कहा–मुझे तो याद नहीं आता।

जालपा–अच्छा, अबकी चलोगे तो दिखा दूँगी। आज तुम बाजार की तरफ गये थे कि नहीं?

रमा ने सिर झुकाकर कहा–आज तो फुरसत नहीं मिली।

जालपा–जाओ मैं तुमसे न बोलूँगी। रोज हीले-हवाले करते हो। अच्छा, कल ला दोगे न?

रमानाथ का कलेजा मसोस उठा। यह चन्द्रहार के लिये इतनी विकल हो रही है। इसे क्या मालूम कि दुर्भाग्य इसका सर्वस्व लूटने का सामान कर रहा है। जिस सरल बालिका पर उसे अपने प्राणों को न्योछावर करना चाहिए था, उसी का सर्वस्व अपहरण करने पर वह तुला हुआ है। वह इतना व्यग्र हुआ, कि जी में आया, कोठे से कूदकर प्राणों का अंत कर दे।

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