उपन्यास >> ग़बन (उपन्यास) ग़बन (उपन्यास)प्रेमचन्द
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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव
देवीदीन ने अविश्वास के भाव से कहा–हँस क्या रहे होंगे बेचारे। मुँह से चाहे हँस लें, दिल तो रोता ही होगा।
देवीदीन को यहाँ बैठे एक घंटा भी न हुआ था कि सहसा जग्गो आ खड़ी हुई। देवीदीन को द्वार पर बैठे देखकर बोली–तुम यहाँ क्या करने लगे? भैया कहाँ हैं?
देवीदीन ने मर्माहत होकर कहा–भैया को ले गये सुपरीडंट के पास। न जाने भेंट होती है कि ऊपर ही ऊपर परागराज भेज दिये जाते हैं।
जग्गो–दारोगाजी भी बड़े वह हैं। कहाँ तो कहा था कि इतना लेंगे, कहाँ लेकर चल दिये !
देवी–इसीलिए तो बैठा हूँ कि आवें तो दो-दो बात कर लूँ।
जग्गो–हाँ, फटकारना जरूर। जो अपनी बात का नहीं, वह अपने बाप का क्या होगा। मैं तो खरी कहूँगी। मेरा क्या कर लेंगे !
देवी–दुकान पर कौन है?
जग्गो–बन्द कर आयी हूँ। अभी बेचारे ने कुछ खाया भी नहीं। सवेरे से वैसे ही हैं। चूल्हे में जाय वह तमासा। उसी के टिकट लेने तो जाते थे। न घर से निकलते तो काहे को यह बला सिर पड़ती।
देवी–जो उधर ही से पराग भेज दिया तो?
जग्गो–तो चिट्ठी तो आवेगी ही। चलकर वहीं देख आवेंगे।
देवी–(आँखों में आँसू भरकर) सजा हो जायेगी?
जग्गो–रुपये जमा कर देंगे तब काहे को होगी। सरकार अपने रुपये ही तो लेगी?
देवी–नहीं पगली, ऐसा नहीं होता। चोर माल लौटा दे तो वह छोड़ थोड़े ही दिया जायेगा।
जग्गो ने परिस्थिति की कठोरता अनुभव करके कहा–दारोग़ाजी...
वह अभी बात भी पूरी करने पायी थी कि दारोग़ाजी की मोटर सामने आ पहुँची। इन्स्पेक्टर साहब भी थे। रमा इन दोनों को देखते ही मोटर से उतरकर आया और प्रसन्न मुख से बोला–तुम यहाँ देर से बैठे हो क्या दादा? आओ कमरे में चलो। अम्मा, तुम कब आयीं?
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