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ग़बन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :544
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8444
आईएसबीएन :978-1-61301-157

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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव


सहसा रमेश बाबू ने द्वार पर पुकारा–गोपी, गोपी, जरा इधर आना। मुंशीजी ने अपने कमरे में पड़े-पड़े कराहकर कहा–कौन है भाई, कमरे में आ जाओ। अरे ! आप हैं रमेश बाबू ! बाबूजी, मैं तो मरकर जिया हूँ। बस यही समझिए कि नयी जिन्दगी हुई। कोई आशा न थी। कोई आगे, न कोई पीछे; दोनों लौंडे आवारा हैं, मैं मरूँ या जीऊँ, उनसे मतलब नहीं। उनकी माँ को मेरी सूरत देखते डर लगता है। बस बेचारी बहू ने मेरी जान बचायी। वह न होती तो अब तक चल बसा होता।

रमेश बाबू ने कृत्रिम समवेदना दिखाते हुए कहा–आप इतने बीमार हो गये और मुझे खबर तक न हुई। मेरे यहाँ रहते आपको इतना कष्ट हुआ ! बहू ने भी मुझे एक पुरजा न लिख दिया। छुट्टी लेनी पड़ी होगी?

मुंशीजी–छुट्टी के लिए दरख्वास्त तो भेज दी थी; मगर साहब मैंने डॉक्टरी सर्टिफिकेट नहीं भेजी। सोलह रुपये किसके घर से लाता। एक दिन सिविल सर्जन के पास गया, मगर उन्होंने चीठी लिखने से इनकार किया। आप तो जानते हैं, वह बिना फीस लिए बात नहीं करते। मैं चला आया और दरख्वास भेज दी। मालूम नहीं मंजूर हुई या नहीं। यह तो डॉक्टरों का हाल है। देख रहे हैं कि आदमी मर रहा है, पर बिना भेंट लिए कदम न उठावेंगे !

रमेश बाबू ने चिंतित होकर कहा–यह तो आपने बुरी खबर सुनायी। मगर आपकी छुट्टी नामंजूर हुई तो क्या होगा?

मुंशीजी ने माथा ठोंककर कहा–होगा क्या, घर बैठा रहूँगा। साहब पूछेंगे तो साफ कह दूँगा, मैं सर्जन के पास गया था, उसने छुट्टी नहीं दी। आखिर इन्हें क्यों सरकार ने नौकर रक्खा है। महज कुरसी की सोभा बढ़ाने के लिए? मुझे डिसमिस हो जाना मंजूर है, पर सर्टिफिकेट न दूँगा। लौंडे गायब हैं। आपके लिए पान तक लाने वाला कोई नहीं है। क्या करूँ।

रमेश ने मुस्कराकर कहा–मेरे लिए आप तरद्दुद न करें। मैं आज पान खाने नहीं, भर पेट मिठाई खाने आया हूँ। (जालपा को पुकारकर) बहूजी, तुम्हारे लिए खुशखबरी लाया हूँ। मिठाई मँगवा लो।

जालपा ने पान की तश्तरी उनके सामने रखकर कहा–पहले वह खबर सुनाइए। शायद आप जिस खबर को नयी समझ रहे हों, वह पुरानी हो गयी हो।

रमेश–जी कहीं हो न ! रमानाथ का पता चल गया। कलकत्ते में हैं।

जालपा–मुझे पहले ही मालूम हो चुका है।

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