उपन्यास >> ग़बन (उपन्यास) ग़बन (उपन्यास)प्रेमचन्द
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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव
जग्गो ने लोटे में पानी लाकर रख दिया और बोली–चिलम रख दूँ? देवीदीन की आज तीन दिन से यह खातिर हो रही थी। इसके पहले बुढ़िया कभी चिलम रखने को न पूछती थी। देवीदीन इसका मतलब समझता था। बुढ़िया को सदय नेत्रों से देखकर बोला–नहीं, रहने दो, चिलम न पीऊँगा।
‘तो मुँह-हाथ तो धो लो। गर्द पड़ी हुई है।’
‘धो लूँगा, जल्दी क्या है।’
बुढ़िया आज का हाल जानने को उत्सुक थी; पर डर रही थी कहीं देवीदीन झुँझला न पड़े। वह उसकी थकान मिटा देना चाहती थी, जिसमें देवीदीन प्रसन्न होकर आप-ही-आप सारा वृत्तान्त कह चले।
‘तो कुछ जलपान तो कर लो। दोपहर को भी तो कुछ नहीं खाया था, मिठाई लाऊँ। लाओ पंखी मुझे दे दो।’
देवीदीन ने पंखिया दे दी। बुढ़िया झलने लगी। दो-तीन मिनट तक आँखें बन्द करके बैठे रहने के बाद देवीदीन ने कहा–आज भैया की गवाही खत्म हो गयी !
बुढ़िया का हाथ रुक गया। बोली–तो कल से वह घर आ जायेंगे?
देवी–अभी नहीं छुट्टी मिली जाती, यही बयान दीवानी में देना पड़ेगा। और अब वह यहाँ आने ही क्यों लगे। कोई अच्छी जगह मिल जायगी, घोड़े पर चढ़े-चढ़े घूमेंगे; मगर है बड़ा पक्का मतलबी। पन्द्रह बेगुनाहों को फँसा दिया। पाँच-छः को तो फाँसी हो जायेगी। औरों को दस-दस बारह-बारह साल की सजा मिली रक्खी है। इसी के बयान से मुकदमा सबूत हो गया। कोई कितनी ही जिरह करे, क्या मजाल ज़रा भी हिचकिचाए। अब एक भी न बचेगा। किसने कर्म किया, किसने नहीं किया इसका हाल दैव जाने; पर मारे सब जायेंगे। घर से भी तो सरकारी रुपया खाकर भागा था। हमें बड़ा धोखा हुआ।
जग्गो ने मीठे तिरस्कार से देखकर कहा–अपनी नेकी-बदी अपने साथ है। मतलबी तो संसार है, कौन किसके लिए मरता है।
देवीदीन ने तीव्र स्वर में कहा–अपने मतलब के लिए जो दूसरों का गला काटे उसको जहर दे देना भी पाप नहीं है।
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