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ग़बन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :544
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8444
आईएसबीएन :978-1-61301-157

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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव


सहसा दो प्राणी आकर खड़े हो गये। एक गोरा, खूबसूरत लड़का था, जिसकी उम्र पन्द्रह-सोलह साल से ज्यादा न थी। दूसरा अधेड़ था और सूरत से चपरासी मालूम होता था।

देवीदीन ने पूछा–किसे खोजते हो?

चपरासी ने कहा–तुम्हारा ही नाम देवीदीन है न? मैं ‘प्रजा-मित्र’ के दफ्तर से आया हूँ। यह बाबू उन्हीं रमानाथ के भाई हैं जिन्हें शतरंज का इनाम मिला था। यह उन्हीं की खोज में दफ्तर गये थे। सम्पादकजी ने तुम्हारे पास भेज दिया। तो मैं जाऊँ न?

यह कहता हुआ वह चला गया। देवीदीन ने गोपी को सिर से पाँव तक देखा। आकृति रमा से मिलती थी। बोला–आओ बेटा बैठो कब आये घर से?

गोपी ने एक खटिक की दुकान पर बैठना शान के खिलाफ़ समझा। खड़ा-खड़ा बोला आज ही तो आया हूँ। भाभी भी साथ हैं। धर्मशाले में ठहरा हुआ हूँ।

देवीदीन ने खड़े होकर कहा–तो जाकर बहू को यहीं लाओ न। ऊपर तो रमा बाबू का कमरा है ही, आराम से रहो। धरमसाले में क्यों पड़े रहोगे। नहीं चलो, मैं भी चलता हूँ। यहाँ सब तरह का आराम है।

उसने जग्गो को यह खबर सुनायी और ऊपर झाड़ू लगाने को कहकर गोपी के साथ धर्मशाले चल दिया। बुढ़िया ने तुरन्त ऊपर जाकर झाड़ू लगाया, लपककर हलवाई की दुकान से मिठायी और दही लायी। सुराही में पानी भरकर रख दिया। फिर अपना हाथ-मुँह धोया, एक रंगीन साड़ी निकाली, गहने पहने और बन-ठनकर बहू की राह देखने लगी।

इतने में फिटन भी आ पहुँची। बुढ़िया ने जाकर जालपा को उतारा। जालपा पहले तो साग-भाजी की दुकान देखकर कुछ झिझकी; पर बुढ़िया का स्नेह-स्वागत देखकर उसकी झिझक दूर हो गयी। उसके साथ ऊपर गयी, तो हर एक चीज इसी तरह अपनी जगह पर पायी मानो अपना ही घर हो।

जग्गो ने लोटे में पानी रखकर कहा–इसी घर में भैया रहते थे बेटी ! आज पन्द्रह रोज से घर सूना पड़ा हुआ है। मुँह-हाथ धोकर दही-चीनी खा लो न बेटी। भैया का हाल तो अभी तुम्हें न मालूम हुआ होगा।

जालपा ने सिर हिलाकर कहा–कुछ ठीक-ठीक नहीं मालूम हुआ। वह जो पत्र छपता है, वहाँ मालूम हुआ था कि पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है।

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