उपन्यास >> ग़बन (उपन्यास) ग़बन (उपन्यास)प्रेमचन्द
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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव
देवीदीन भी ऊपर आ गया था। बोला–गिरफ्तार तो किया था; पर अब वह एक मुकदमें में सरकारी गवाह हो गये हैं। परागराज में अब उन पर कोई मुकदमा न चलेगा और साइत नौकरी-चाकरी भी मिल जाय।
जालपा ने गर्व से कहा–क्या इसी डर से वह सरकारी गवाह हो गये हैं? वहाँ तो उन पर कोई मामला ही नहीं है। मुकदमा क्यों चलेगा?
देवीदीन ने डरते-डरते कहा–कुछ रुपये-पैसे का मुआमला था न?
जालपा ने मानो आहत होकर कहा–वह कोई बात न थी। ज्यों ही हम लोगों को मालूम हुआ कि कुछ सरकारी रकम इनसे खर्च हो गयी है, उसी वक्त पहुँचा दी। यह व्यर्थ घबड़ाकर चले आये और फिर ऐसी चुप्पी साधी कि अपनी खबर तक न दी।
देवीदीन का चेहरा जगमगा उठा, मानो किसी व्यथा से आराम मिल गया है। बोला–तो यह हम लोगों को क्या मालूम ! बार-बार समझाया कि घर खत-पत्तर भेज दो, घबड़ाते होंगे; पर मारे सरम के लिखते ही न थे। इसी धोखे में पड़े रहे कि परागराज में मुकदमा चल रहा होगा। जानते तो सरकारी गवाह क्यों बनते !
‘सरकारी गवाह’ का आशय जालपा से छिपा न था। समाज में उनकी जो निन्दा और अपकीर्ति होती है, यह भी उससे छिपी न थी। सरकारी गवाह क्यों बनाये जाते हैं, किस तरह उन्हें प्रलोभन दिया जाता है, किस भाँति वह पुलिस के पुतले बनकर अपने ही मित्रों का गला घोटते हैं, यह उसे मालूम था। मगर कोई आदमी अपने बुरे आचरण पर लज्जित होकर सत्य का उद्घाटन करे, छल और कपट का आवरण हटा दे, तो वह सज्जन है, उसके साहस की जितनी प्रशंसा की जाये, कम है। मगर शर्त यही है कि वह अपनी गोष्ठी के साथ किये का फल भोगने को तैयार रहे। हँसता-खेलता फाँसी पर चढ़ जाये तो वह सच्चा वीर है; लेकिन अपने प्राणों की रक्षा के लिए स्वार्थ के नीच विचार से, दण्ड की कठोरता से भयभीत होकर अपने साथियों से दगा करे, आस्तीन का साँप बन जाये तो वह कायर है, पतित है, बेहया है। विश्वासघात डाकुओं और समाज के शत्रुओं में भी उतना ही हेय है जितना किसी अन्य क्षेत्र में। ऐसे प्राणी को समाज कभी क्षमा नहीं करता; कभी नहीं–जालपा इसे खूब समझती थी। यहाँ तो समस्या और भी जटिल हो गयी थी। रमा ने दण्ड के भय से अपने किये हुए पापों का परदा नहीं खोला था। उसमें कम-से-कम सच्चाई तो होती। निन्द्य होने पर भी आंशिक सच्चाई का एक गुण तो होता। यहाँ तो उन पापों का परदा खोला गया था, जिनकी हवा तक उसे न लगी थी। जालपा को सहसा इसका विश्वास न आया। अवश्य कोई-न-कोई बात और हुई होगी, जिसने रमा को सरकारी गवाह बनने के लिए मजबूर कर दिया होगा। सकुचाती हुई बोली–क्या यहाँ भी कोई...कोई बात हो गयी थी?
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