उपन्यास >> ग़बन (उपन्यास) ग़बन (उपन्यास)प्रेमचन्द
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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव
रमा पर इस प्रलोभन का कुछ भी असर न हुआ। बोला–मुझे क्लर्क बनना मंजूर है, इस तरह की तरक्की नहीं चाहता। यह आप ही को मुबारक रहे।
इतने में डिप्टी साहब और इंस्पेक्टर भी आ पहुँचे। रमा को देखकर इन्सपेक्टर साहब ने फरमाया–हमारे बाबू साहब तो पहले ही से तैयार बैठे हैं। बस इसी कारगुजारी पर वारा-न्यारा है।
रमा ने इस भाव से कहा, मानो मैं भी अपना नफा-नुकसान समझता हूँ–जी हाँ, आज वारा-न्यारा कर दूँगा। इतने दिनों तक आप लोगों के इशारे पर चला, अब अपनी आँखों से देखकर चलूँगा।
इंस्पेक्टर ने दारोगा का मुँह देखा, दारोगा ने डिप्टी का मुँह देखा, डिप्टी ने इनंस्पेक्टर का मुँह देखा। यह कहता क्या है? इन्सपेक्टर साहब विस्मित होकर बोले–क्या बात है? हलफ से कहता हूँ, आप कुछ नाराज मालूम होते हैं !
रमा–मैंने फैसला किया है कि आज अपना बयान बदल दूँगा। बेगुनाहों का खून नहीं कर सकता।
इंस्पेक्टर ने दया-भाव से उसकी तरफ देखकर कहा–आप बेगुनाहों का खून नहीं कर रहे हैं, अपनी तकदीर की इमारत खड़ी कर रहे हैं। हलफ़ से कहता हूँ, ऐसे मौके बहुत कम आदमियों को मिलते हैं। आज क्या बात हुई कि आप इतने खफ़ा हो गये? आपको कुछ मालूम है दारोगा साहब? आदमियों ने तो कोई शेखी नहीं की? अगर किसी ने आपके मिजाज के खिलाफ कोई काम किया हो, तो उसे गोली मार दीजिए, हलफ़ से कहता हूँ !
दारोगा–मैं अभी जाकर पता लगाता हूँ।
रमा–आप तकलीफ न करें। मुझे किसी से शिकायत नहीं। मैं थोड़े से फायदे के लिए अपने ईमान का खून नहीं कर सकता।
एक मिनट सन्नाटा रहा। किसी को कोई बात न सूझी। दारोगा कोई दूसरा चकमा सोच रहे थे, इंस्पेक्टर कोई दूसरा प्रलोभन। डिप्टी एक दूसरी ही फिक्र में था। रूखेपन से बोला–रमा बाबू, यह अच्छा बात न होगा।
रमा ने भी गर्म होकर कहा–आपके लिए न होगी। मेरे लिए तो सबसे अच्छी यही बात है।
डिप्टी–नहीं, आपका वास्ते इससे बुरा दूसरा बात नहीं है। हम तुमको छोड़ेगा नहीं, हमारा मुकदमा चाहे बिगड़ जाय; लेकिन हम तुमको ऐसा लेसन दे देगा कि तुम उमिर भर न भूलेगा। आपको वही गवाही देना होगा जो आप दिया। अगर तुम कुछ गड़बड़ करेगा, कुछ भी गोलमोल किया तो हम तोमारे साथ दूसरा बर्ताव करेगा। एक रिपोर्ट में तुम यों (कलाइयों को ऊपर-नीचे रखकर) चला जायेगा।
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