उपन्यास >> ग़बन (उपन्यास) ग़बन (उपन्यास)प्रेमचन्द
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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव
यह कहते हुए उसने आँखें निकालकर रमा को देखा, मानो कच्चा ही खा जायेगा। रमा सहम उठा। इन आतंक से भरे शब्दों ने उसे विचलित कर दिया। यह सब कोई झूठा मुकदमा चलाकर उसे फँसा दें, तो उसकी कौन रक्षा करेगा। उसे यह आशा न थी कि डिप्टी साहब जो शील और विनय के पुतले बने हुए थे, एकबारगी यह रुद्र रूप धारण कर लेंगे; मगर वह इतनी आसानी से दबने वाला न था। तेज होकर बोला–आप मुझसे जबरदस्ती शहादत दिलायेंगे?
डिप्टी ने पैर पटकते हुए कहा–हाँ, जबरदस्ती दिलायेगा !
रमा–यह अच्छी दिल्लगी है !
डिप्टी–तोम पुलिस को धोखा देना दिल्लगी समझता है ! अभी दो गवाह देकर साबित कर सकता है कि तुम राजद्रोह का बात कर रहा था। बस चला जायेगा सात साल के लिए। चक्की पीसते-पीसते हाथ में घट्टा पड़ जायेगा। यह चिकना गाल नहीं रहेगा।
रमा जेल से डरता था। जेल-जीवन की कल्पना ही से उसके रोएँ खड़े होते थे। जेल ही के भय से उसने यह गवाही देनी स्वीकार की थी। वही भय इस वक्त भी उसे कातर करने लगा। डिप्टी भाव-विज्ञान का ज्ञाता था। आसन का पता पा गया। बोला–वहाँ हलवा-पूरी नहीं पायेगा। धूल मिला हुआ आटा का रोटी, गोभी के सड़े हुए पत्तों का रसा, और अरहर के दाल का पानी खाने को पावेगा। काल-कोठरी का चार महीना भी हो गया, तो तुम बच नहीं सकता। वहीं मर जायेगा। बात-बात पर वार्डर गाली देगा, जूतों से पीटेगा, तुम समझाता क्या है !
रमा का चेहरा फीका पड़ने लगा। मालूम होता था, प्रतिक्षण उसका खून सूखता चला जाता है। अपनी दुर्बलता पर उसे इतनी ग्लानि हुई कि वह रो पड़ा। काँपती हुई आवाज से बोला–आप लोगों की यह इच्छा है, तो यही सही ! भेज दीजिये जेल। मर ही जाऊँगा न फिर तो आप लोगों से मेरा गला छूट जायेगा। जब आप यहाँ मुझे तबाह करने पर आमादा हैं, तो मैं भी मरने को तैयार हूँ। जो कुछ होना होगा, होगा।
उसका मन दुर्बलता की उस दशा को पहुँच गया था, जब ज़रा-सी सहानुभूति, जरा-सी सहृदयता सैकड़ों धमकियों से कहीं कारगर हो जाती है। इंस्पेक्टर साहब ने मौका ताड़ लिया। उसका पक्ष लेकर डिप्टी से बोले–हलफ से कहता हूँ, आप लोग आदमी को पहचानते तो हैं नहीं, लगते हैं रोब जमाने। इस तरह गवाही देना हर एक समझदार आदमी को बुरा मालूम होगा। यह कुदरती बात है। जिसे ज़रा भी इज्जत का खयाल है, वह पुलिस के हाथों की कठपुतली बनना पसंद न करेगा। बाबू साहब की जगह मैं होता तो मैं भी ऐसा करता; लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि यह हमारे खिलाफ़ शहादत देंगे। आप लोग अपना काम कीजिए, बाबू साहब की तरफ से बेफिक्र रहिए, हलफ़ से कहता हूँ।
उसने रमा का हाथ पकड़ लिया और बोला–आप मेरे साथ चलिए, बाबूजी, आपको अच्छे-अच्छे रिकार्ड सुनाऊँ।
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