उपन्यास >> ग़बन (उपन्यास) ग़बन (उपन्यास)प्रेमचन्द
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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव
मणिभूषण ने लज्जित होकर कहा–आपका सबकुछ है, यह आप कैसे कह सकती हैं कि आपका कोई अधिकार नहीं। आप वह मकान देख लें। पन्द्रह रुपये किराया है। मैं तो समझता हूँ आपको कोई कष्ट न होगा। जो-जो चीजें आप कहें, मैं वहाँ पहुँचा दूँ।
रतन ने व्यंग्यमय आँखों से देखकर कहा–तुमने पन्द्रह रुपये का मकान मेरे लिए व्यर्थ लिया ! इतना बड़ा मकान लेकर मैं क्या करूँगी ! मेरे लिए एक कोठरी काफी है, जो दो रुपये में मिल जायेगी। सोने के लिए ज़मीन है ही। दया का बोझ सिर पर जितना कम हो, उतना ही अच्छा !
मणिभूषण ने बड़े विनम्र भाव से कहा–आखिर आप चाहती क्या हैं? उसे कहिए तो !
रतन उत्तेजित होकर बोली–मैं कुछ नहीं चाहती। मैं इस घर का एक तिनका भी अपने साथ न ले जाऊँगी। जिस चीज़ पर मेरा कोई अधिकार नहीं, वह मेरे लिए वैसी ही है जैसी किसी गैर आदमी की चीज़। मैं दया की भिखारिणी न बनूँगी। तुम इन चीजों के अधिकारी हो, ले जाओ। मैं ज़रा भी बुरा नहीं मानती ! दया की चीज न जबरदस्ती ली जा सकती है, न जबरदस्ती दी जा सकती है। संसार में हज़ारों विधवाएँ हैं, जो मेहनत-मजूरी करके अपना-निबाह कर रही हैं। मैं भी वैसे ही हूँ। मैं भी उसी तरह मजूरी करूँगी और अगर न कर सकूँगी, तो किसी गड्ढे में डूब मरूँगी। जो अपना पेट भी न पाल सके, उसे जीते रहने का, दूसरों का बोझ बनने का कोई हक़ नहीं है।
यह कहती हुई रतन घर से निकली और द्वार की ओर चली। मणिभूषण ने उसका रास्ता रोककर कहा–अगर आपकी इच्छा न हो, तो मैं बँगला अभी न बेचूँ।
रतन ने जलती हुई आँखों से उसकी ओर देखा। उसका चेहरा तमतमाया हुआ था। आँसुओं से उमड़ते हुए वेग को रोककर बोली–मैंने कह दिया, इस घर की किसी चीज़ से मेरा नाता नहीं है। मैं किराये की लौंडी थी। लौंडी का घर से क्या सम्बन्ध है। न जाने किस पापी ने यह कानून बनाया था। अगर ईश्वर कहीं है और उसके यहाँ कोई न्याय होता है, तो एक दिन उसी के सामने उस पापी से पूछूँगी, क्या तेरे घर में माँ-बहनें न थीं? तुझे उनका अपमान करते लज्जा न आयी? अगर मेरी जबान में इतनी ताकत होती कि सारे देश में उसकी आवाज पहुँचती, तो मैं सब स्त्रियों से कहती–बहनों, किसी सम्मिलित परिवार में विवाह मत करना और अगर करना तो जब तक अपना घर अलग न बना लो, चैन की नींद मत सोना। यह मत समझो कि तुम्हारे पति के पीछे उस घर में तुम्हारा मान के साथ पालन होगा। अगर तुम्हारे पुरुष ने कोई तरका नहीं छोड़ा, तो तुम अकेली रहो चाहे परिवार में, एक ही बात है। तुम अपमान और मजूरी से नहीं बच सकतीं। अगर तुम्हारे पुरुष ने कुछ छोड़ा है, तो अकेली रहकर तुम उसे भोग सकती हो, परिवार में रहकर तुम्हें उससे हाथ धोना पड़ेगा। परिवार तुम्हारे लिए फूलों की सेज नहीं, काँटों की शय्या है; तुम्हारा पार लगाने वाली नौका नहीं, तुम्हें निगल जाने वाला जन्तु।
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