लोगों की राय

उपन्यास >> ग़बन (उपन्यास)

ग़बन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :544
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8444
आईएसबीएन :978-1-61301-157

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

438 पाठक हैं

ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव


एक महिला ने, जो जालपा के साथ ही बैठी थी, नाक सिकोड़कर कहा–जी चाहता है, इस दुष्ट को गोली मार दें। ऐसे-ऐसे स्वार्थी भी इस अभागे देश में पड़े हैं, जो नौकरी या थोड़े से धन के लोभ में निरपराधों के गले पर छुरी फेरने से भी नहीं हिचकते !

जालपा ने कोई जवाब न दिया।

एक दूसरी महिला ने जो आँखों पर ऐनक लगाये हुए थी, निराशा के भाव से कहा–इस अभागे देश का ईश्वर ही मालिक है। गवर्नरी तो लाला को कहीं मिली नहीं जाती ! अधिक-से-अधिक कहीं क्लर्क हो जायेंगे। उसी के लिए अपनी आत्मा की हत्या कर रहे हैं।
मालूम होता है, कोई मरभुखा, नीच आदमी है; पल्ले सिरे का कमीना छिछोरा।

तीसरी महिला ने ऐनकवाली देवी से मुस्कराकर पूछा–आदमी फ़ैसनेबुल है और पढ़ा-लिखा भी मालूम होता है। भला, तुम इसे पा जाओ तो क्या करो?

ऐनकबाज़ देवी ने उद्दण्डता से कहा–नाक काट लूँ। बस नकटा बनाकर छोड़ दूँ?

‘और जानती हो, मैं क्या करूँ?’

‘नहीं ! शायद गोली मार दोगी !’

‘ना ! गोली न मारूँ। सरे बाज़ार खड़ा करके पाँच सौ जूते लगवाऊँ। चाँद गंजी हो जाय !’

‘उस पर तुम्हें ज़रा भी दया न आयेगी?’

‘यह कुछ कम दया है? इसकी पूरी सजा तो यह है कि किसी ऊँची पहाड़ी से ढकेल दिया जाय ! अगर यह महाशय अमेरिका में होते, तो जिन्दा जला दिये जाते !’

एक वृद्धा ने इन युवतियों का तिरस्कार करके कहा–क्यों व्यर्थ में मुँह खराब करती हो? वह घृणा के योग्य नहीं, दया के योग्य है। देखती नहीं हो, उसका चेहरा कैसा पीला हो गया है, जैसे उसका कोई गला दबाये हुए हो। अपनी माँ या बहन को देख ले, तो ज़रूर रो पड़े आदमी दिल का बुरा नहीं है। पुल्स ने धमकाकर उसे सीधा किया है। मालूम होता है, एक-एक शब्द उसके हृदय को चीर-चीरकर निकल रहा हो।

ऐनकवाली महिला ने व्यंग्य किया–जब अपने पाँव में काँटा चुभता है, तब आह निकलती है...

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book