लोगों की राय

उपन्यास >> ग़बन (उपन्यास)

ग़बन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :544
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8444
आईएसबीएन :978-1-61301-157

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

438 पाठक हैं

ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव


देवी–इन कामों में थकान नहीं होती बेटी।

आठ बज गये थे। सड़क पर मोटरों का ताँता बँधा हुआ था। सड़क की दोनों पटरियों पर हज़ारों स्त्री-पुरुष बने-ठने, हँसते-बोलते चले जाते थे। जालपा ने सोचा, दुनिया कैसी अपने राग-रंग में मस्त है। जिसे उसके लिए मरना हो मरे, वह अपनी टेव न छोड़ेगी। हर एक अपना छोटा-सा मिट्टी का घरौंदा बनाये बैठा है। देश बह जाये। उसे परवा नहीं। उसका घरौंदा बचा रहे। उसके स्वार्थ में बाधा न पड़े। उसका भोला-भाला हृदय बाजार को बन्द देखकर खुश होता। सभी आदमी शोक से सिर झुकाये, त्योरियाँ बदले उन्मत्त-से नज़र आते। सभी के चेहरे भीतर की जलन से लाल होते। वह न जानती थी कि इस जन-सागर में ऐसी छोटी-छोटी कंकड़ियों के गिरने से एक हल्कोरा भी नहीं उठता, आवाज तक नहीं आती।

[४४]

रमा मोटर पर चला, तो उसे कुछ सूझता न था, कुछ समझ में न आता था कहाँ जा रहा है। जाने हुए रास्ते उसके लिए अनजाने हो गये थे। उसे जालपा पर क्रोध न था, जरा भी नहीं। जग्गो पर भी उसे क्रोध न था। क्रोध था अपनी दुर्बलता पर, अपनी स्वार्थ-लोलुपता पर, अपनी कायरता पर। पुलिस के वातावरण में उसका औचित्य-ज्ञान भ्रष्ट हो गया था। वह कितना बड़ा अन्याय करने जा रहा है, इसका उसे केवल उस दिन खयाल आया था, जब जालपा ने समझाया था। फिर यह शंका मन में उठी ही नहीं। अफ़सरों ने बड़ी-बड़ी आशाएँ बँधाकर उसे बहला रक्खा। वह कहते, अजी बीवी की कुछ फिक्र न करो। जिस वक्त तुम एक जड़ाऊ हार लेकर पहुँचोगे और रुपयों की एक थैली नजर कर दोगे, बेगम साहब का सारा गुस्सा भाग जायेगा। अपने सूबे में किसी अच्छी सी जगह पर पहुँच जाओगे, आराम से जिन्दगी कटेगी। कैसा गुस्सा ! इसकी कितनी ही आँखों देखी मिसालें दी गयीं। रमा चक्कर में आ गया। फिर उसे जालपा से मिलने का अवसर ही न मिला। पुलिस का रंग जमता गया। आज वह जड़ाऊ हार जेब में रक्खे जालपा को अपनी विजय की खुशखबरी देने गया था। वह जानता था जालपा पहले कुछ नाक-भौह सिकोड़ेगी; पर यह भी जानता था कि यह हार देखकर वह जरूर खुश हो जायेगी। कल ही संयुक्त प्रान्त के होम-सेक्रेटरी के नाम कमिश्नर पुलिस का पत्र उसे मिल जायेगा। दो-चार दिन यहाँ खूब सैर करके घर की राह लेगा। देवीदीन और जग्गो को भी वह अपने साथ ले जाना चाहता था। उनका एहसान वह कैसे भूल सकता था। यही मन्सूबे मन में बाँधकर वह जालपा के पास गया था, जैसे कोई भक्त फूल और नैवेद्य लेकर देवता की उपासना करने जायँ; पर देवता ने वरदान देने के बदले उसके थाल को ठुकरा दिया, उसके नैवेद्य को पैरों से कुचल डाला ! उसे कुछ कहने का अवसर ही न मिला। आज पुलिस के विषैले वातावरण से निकलकर उसने स्वच्छ वायु पायी थी और उसकी सुबुद्धि सचेत हो गयी थी। अब उसे अपनी पशुता अपने यथार्थ रूप में दिखायी दी–कितनी विकराल, कितनी दानवी मूर्ति थी। वह स्वयं उसकी ओर ताकने का साहस न कर सकता था। उसने सोचा, इसी वक्त जज के पास चलूँ और सारी कथा कह सुनाऊँ। पुलिस मेरी दुश्मन हो जाय, मुझे जेल में सड़ा डाले, कोई परवाह नहीं। सारी कलई खोल दूँगा। क्या जज अपना फैसला नहीं बदल सकता? अभी तो सब मुल्जिम हवालात में है। पुलिस वाले खूब दाँत पीसेंगे, खूब नाचे-कूदेंगे, शायद मुझे कच्चा ही खा जायँ ! इसी दुर्बलता ने तो मेरे मुँह में कलिख लगा दी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book