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ग़बन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :544
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8444
आईएसबीएन :978-1-61301-157

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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव


दारोगा ने ज़ोहरा का हाथ पकड़कर कहा–बस, एक जाम ज़ोहरा, और एक बात और, आज मेरी मेहमानी कबूल करो !

रमा ने तेवर बदलकर कहा–दारोगाजी, आप इस वक्त यहाँ से जायँ। मैं यह गवारा नहीं कर सकता।

दारोगा ने नशीली आँखों से देखकर कहा–क्या आपने पट्टा लिखा लिया है?

रमा ने कड़कर कहा–जी हाँ, मैंने पट्टा लिखा लिया है !

दारोगा–तो आपका पट्टा खारिज !

रमा–मैं कहता हूँ, यहाँ से चले जाइए।

दारोगा–अच्छा ! अब मेढ़की को भी जुकाम पैदा हुआ ! क्यों न हो। चलो ज़ोहरा इन्हें बकने दो।

यह कहते हुए उन्होंने ज़ोहरा का हाथ पकड़कर उठाया।

रमा ने उनके हाथ को झटका देकर कहा–मैं कह चुका, आप यहाँ से चले जायँ। ज़ोहरा इस वक्त नहीं जा सकती। अगर वह गयी, तो मैं उसका और आपका–दोनों का खून पी जाऊँगा। ज़ोहरा मेरी है, और जब तक मैं न कहूँ, कोई उसकी तरफ आँखें नहीं उठा सकता।

यह कहते हुए उसने दारोगा साहब का हाथ पकड़कर दरवाज़े के बाहर निकाल दिया और दरवाजा बन्द करके सिटकनी लगा दी। दारोगाजी बलिष्ठ आदमी थे; लेकिन इस वक्त नशे ने उन्हें दुर्बल कर रक्खा था। बाहर बरामदे में खड़े होकर वह गालियाँ बकने और द्वार पर ठोकर मारने लगे।

रमा ने कहा–कहो तो जाकर बचा को बरामदे के नीचे ढकेल दूँ। शैतान का बच्चा !

ज़ोहरा–बकने दो आप ही चला जायेगा।

रमा–चला गया !

ज़ोहरा ने मगन होकर कहा–तुमने बहुत अच्छा किया, सुअर को निकाल बाहर किया । मुझे ले जाकर दिक़ करता। क्या तुम सचमुच उसे मारते?

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