उपन्यास >> ग़बन (उपन्यास) ग़बन (उपन्यास)प्रेमचन्द
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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव
वह एक मिनट खड़ी रही, तब रमा के पास जाकर बोली–क्या मुझसे नाराज हो? बेकसूर, बिना कुछ पूछे-गछे?
रमा ने फिर भी कुछ जवाब न दिया। जूते पहनने लगा। ज़ोहरा ने उसका हाथ पकड़कर कहा–क्या यह खफ़गी इसलिए है कि मैं इतने दिनों आयी क्यों नहीं?
रमा ने रुखाई से जवाब दिया–अगर तुम अब भी न आतीं, तो मेरा क्या अख्तियार था। तुम्हारी दया थी कि चली आयीं !
यह कहने के साथ उसे ख़्याल आया कि मैं इसके साथ अन्याय कर रहा हूँ। लज्जित नेत्रों से उसकी ओर ताकने लगा।
ज़ोहरा ने मुस्कुराकर कहा–यह अच्छी दिल्लगी है। आपने ही तो एक काम सौंपा और जब वह काम करके लौटी, तो आप बिगड़ रहे हैं। क्या तुमने वह काम इतना आसान समझा था कि चुटकी बजाने से पूरा हो जायेगा। तुमने मुझे उस देवी से वरदान लेने भेजा था, जो ऊपर से फूल है, पर भीतर से पत्थर; जो इतनी नाजुक होकर भी इतनी मजबूत है।
रमा ने बेदिली से पूछा–है कहाँ? क्या करती है?
ज़ोहरा–उसी दिनेश के घर हैं, जिसको फाँसी की सजा हो गयी है। उसके दो बच्चे हैं, औरत है और माँ है। दिनभर उन्हीं बच्चों को खेलाती है, बुढ़िया के लिए नदी से पानी लाती है, घर का सारा काम-काज करती है और उनके लिए बड़े-बड़े आदमियों से चन्दा माँग लाती है। दिनेश के घर में न कोई जायदाद थी, न रुपये थे। लोग बड़ी तकलीफ में थे। कोई मददगार तक न था, जो जाकर उन्हें ढाढ़स तो देता। जितने साथी-सोहबाती थे, सबके-सब मुँह छिपा बैठे। दो-तीन फ़ाके तक हो चुके थे। जालपा ने जाकर उनको जिला दिया।
रमा की सारी बेदिली काफुर हो गयी। जूता छोड़ दिया और कुरसी पर बैठकर बोले–तुम खड़ी क्यों हो, शुरू से बताओ, तुमने तो बीच में से कहना शुरू किया। एक बात भी मत छोड़ना। तुम उसके पास पहले कैसे पहुँची? पता कैसे लगा?
ज़ोहरा–कुछ नहीं, पहले उसी देवीदीन खटिक के पास गयी। उसने दिनेश के घर का पता दिया। चटपट जा पहुँची।
रमा–तुमने जाकर उसे पुकारा? तुम्हें देखकर चौंकी नहीं? कुछ झिझकी तो जरूर होगी !
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