उपन्यास >> ग़बन (उपन्यास) ग़बन (उपन्यास)प्रेमचन्द
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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव
अदालत ने सरकारी वकील से पूछा–क्या प्रयाग से इस मुआमले की कोई रिपोर्ट माँगी गयी थी?
वकील ने कहा–जी हाँ, मगर हमारा उस विषय पर कोई विवाद नहीं है।
सफाई के वकील ने कहा–इससे यह तो सिद्ध हो जाता है कि मुल्ज़िम डाके में शरीक नहीं था। अब केवल यह बात रह जाती है कि वह मुख़बिर क्यों बना?
वादी वकील–स्वार्थ-सिद्धि के सिवा और क्या हो सकता है !
सफाई का वकील–मेरा कथन है, उसे धोखा दिया गया और जब उसे मालूम हो गया कि जिस भय से उसने पुलिस के हाथों की कठपुतली बनना स्वीकार किया था, वह उसका भ्रम था, तो उसे धमकियाँ दी गयीं।
अब सफ़ाई का कोई गवाह न था। सरकारी वकील ने बहस शुरू की–योर आनर, आज आपके सम्मुख एक ऐसा अभियोग उपस्थित हुआ है जैसा सौभाग्य से बहुत कम हुआ करता है। आपको जनकपुर की डकैती का हाल मालूम है। जनकपुर के आसपास कई गावों में लगातार डाके पड़े और पुलिस डकैतों की खोज करने लगी। महीनों पुलिस कर्मचारी अपनी जान हथेलियों पर लिये, डकैतों को ढूँढ़ निकालने की कोशिश करते रहे। आखिर उनकी मेहनत सफल हुई और डाकुओं की खबर मिली। यह लोग एक घर के अन्दर बैठे पाये गये। पुलिस ने एकबारगी सबों को पकड़ लिया; लेकिन आप जानते हैं, ऐसे मामलों में अदालतों के लिए सबूत पहुँचाना कितना मुश्किल होता है। जनता इन लोगों से कितना डरती है। प्राणों के भय से शहादत देने पर तैयार नहीं होती। यहाँ तक कि जिनके घरों में डाके पड़े थे, वे भी शहादत देने का अवसर आया तो साफ निकल गये।
महानुभावों, पुलिस इसी उलझन में पड़ी हुई थी कि एक युवक आता है और इन डाकुओं का सरगना होने का दावा करता है। वह उन डकैतियों का ऐसा सजीव, ऐसा प्रमाणपूर्ण वर्णन करता है कि पुलिस धोखे में आ जाती है। पुलिस ऐसे अवसर पर ऐसा आदमी पाकर गैबी मदद समझती है। यह युवक इलाहाबाद से भाग आया था और यहाँ भूखों मरता था। अपने भाग्य-निर्माण का ऐसा सुअवसर पाकर उसने उससे अपना स्वार्थ सिद्ध करने का निश्चय कर लिया। मुख़बिर बनकर सजा का तो उसे कोई भय था ही नहीं, पुलिस की सिफारिस से कोई अच्छी नौकरी पा जाने का विश्वास था। पुलिस ने उसका खूब आदर-सत्कार किया और उसे अपना मुखबिर बना लिया। बहुत सम्भव था कि कोई शहादत न पाकर पुलिस इन मुल्जिमों को छोड़ देती और उन पर कोई मुकदमा न चलाती; पर इस युवक के चकमे में आकर उसने अभियोग चलाने का निश्चय कर लिया। उसमें चाहे और कोई गुण हो या न हो, उसकी रचना-शक्ति की प्रखरता से इनकार नहीं किया जा सकता। उसने डकैतियों का ऐसा यथार्थ वर्णन किया कि जंजीर की एक कड़ी भी कहीं से भी गायब न थी। अंकुर के फल निकलने तक की सारी बातों की उसने कल्पना कर ली थी। पुलिस ने मुक़दमा चला दिया।
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