लोगों की राय

उपन्यास >> ग़बन (उपन्यास)

ग़बन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :544
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8444
आईएसबीएन :978-1-61301-157

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

438 पाठक हैं

ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव


रमानाथ–क्यों, पाँच बाजियाँ पूरी न कर लीजिए।

रमेश–कल दफ्तर भी तो जाना है।

रमा ने अधिक आग्रह न किया। दोनों सोये।

रमा यों ही आठ बजे से पहले न उठता था, फिर आज तो तीन बजे सोया था। आज तो उसे दस बजे तक सोने का अधिकार था। रमेश नियमानुसार पाँच बजे उठ बैठे, स्नान किया, संध्या की, घूमने गये और आठ बजे लौटे; मगर रमा तब तक सोता ही रहा। आखिर जब साढ़े नौ बज गये तो उन्होंने उसे जगाया।

रमा ने बिगड़कर कहा–नाहक जगा दिया; कैसी मजे़ की नींद आ रही थी।

रमेश–अजी वह अर्ज़ी देना है कि नहीं तुमको?

रमानाथ–आप दे दीजियेगा।

रमेश–और जो कहीं साहब ने बुलाया, तो मैं ही चला जाऊँगा?

रमा–उँह, जो चाहे कीजियेगा, मैं तो सोता हूँ।

रमा फिर लेट गया और रमेश ने भोजन किया, कपड़े पहने और दफ्तर चलने को तैयार हुए। उसी वक्त रमानाथ हड़बड़ाकर उठा और आँखें मलता हुआ बोला–मैं भी चलूँगा।

रमेश–अरे मुँह-हाथ तो धोले भले आदमी।

रमानाथ–आप तो चले जा रहे हैं।

रमेश–नहीं, अभी १५–२० मिनट रुक सकता हूँ, तैयार हो जाओ।

रमानाथ–मैं तैयार हूँ। वहाँ से लौटकर घर भोजन करूँगा।

रमेश–कहता तो हूँ, अभी आध घंटे तक रुका हुआ हूँ।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book