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ग़बन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :544
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8444
आईएसबीएन :978-1-61301-157

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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव


रमा तो यह चाहता ही था, चट झूले के पास जा पहुँचा। रतन उसे देखकर मुसकरायी और बोली–इन शैतानों ने मेरा नाक में दम कर रक्खा है। झूले से इन सबों का पेट ही नहीं भरता। आइए जरा आप भी बेगार कीजिए, मैं तो थक गयी। यह कहकर वह पक्के चबूतरे पर बैठ गयी, रमा झोंके देने लगा। बच्चों ने नया आदमी देखा, तो सब के सब अपनी बारी के लिए उतावले होने लगे। रतन के हाथों दो बारियाँ आ चुकी थीं; पर यह कैसे हो सकता था कि कुछ लड़के तो तीसरी बार झूलें, और बाकी बैठे मुँह ताकें,  दो उतरते तो चार झूले पर बैठ जाते। रमा को बच्चों से नाममात्र को भी प्रेम न था, पर इस वक्त फँस गया था, क्या करता !

आखिर आध घण्टे की बेगार के बाद उसका जी ऊब गया। घड़ी में साढ़े नौ बज रहे थे। मतलब की बात कैसे छेड़े। रतन तो झूले में इतनी मग्न थी, मानों उसे रुपयों की सुध ही नहीं है।

सहसा रतन ने झूले के पास जाकर कहा–बाबूजी मैं बैठती हूँ, मुझे झुलाइए, मगर नीचे से नीचे झूले पर खड़े होकर पेंग मारिए।

रमा बचपन ही से झूले पर बैठते डरता था। एक बार मित्रों ने जबरदस्ती झूले पर बैठा दिया, तो उसे चक्कर आने लगा; पर इस अनुरोध ने उसे झूले पर आने के लिए मजबूर कर दिया। अपनी अयोग्यता कैसे प्रकट करे। रतन दो बच्चों को लेकर बैठ गयी, और यह गीत गाने लगी–

कदम की डरिया झूला पड़ी गयो री,
राधा रानी झूलन आयीं।

रमा झूले पर खड़ा होकर पेंग मारने लगा; लेकिन उसके पाँव काँप रहे थे, और दिल बैठा जाता था। जब झूला ऊपर से गिरता था, तो उसे ऐसा जान पड़ता था, मानो कोई तरल वस्तु उसके वक्ष में चुभती चली जा रही है–और रतन लड़कियों के साथ गा रही थी–

कदम की डरिया झूला पड़ी गयो री,
राधा रानी झूलन आयीं।

एक क्षण के बाद रतन ने कहा–ज़रा और बढ़ाइए साहब, आपसे तो झूला बढ़ता ही नहीं।

रमा ने लज्जित होकर और जोर लगाया; पर झूला न बढ़ा। रमा के सिर में चक्कर आने लगे।

रतन–आपको पेंग मारना नहीं आता, कभी झूला नहीं झूले?

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