कहानी संग्रह >> गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह) गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है
बीती यादें
(श्रीमती शिवरानी देवी का जन्म १८९० ई. में इलाहाबाद जिले के एक ग्राम में एक कायस्थ परिवार में हुआ। बचपन में कुछ विशेष शिक्षा तो नहीं पाई, पर अपने माता-पिता से एक दृढ़ता और विशाल हृदयता पाई जो उनके जीवन की सबसे बड़ी निधियाँ हैं। विवाह आपका स्व. प्रेमचंद से हुआ उन्हीं की प्रेरणा से आपने कहानियाँ लिखना शुरू किया। जिसमें से पहली रचना १९२७ ई. में प्रकाशित हुई। तब से आप निरन्तर कहानियाँ लिखती जाती हैं। प्रधानतः आप एक कहानी लेखिका हैं। आपकी कहानियाँ अधिकतर भारत के नारी-जीवन से ही सम्बन्ध रखती हैं और आपकी पात्रियाँ बड़ी दृढ़चरित्र तथा निर्भीक और वात्सल्यपूर्ण होती हैं। सामाजिक कुरीतियों के चित्रण में श्रीमती शिवरानी देवी को बड़ी सफलता मिली है। सभी कहानियों के अन्दर किसी सामाजिक अवगुण के खिलाफ आवाज उठाई गई होती है। प्रस्तुत कहानी में ऐसा नहीं है। यह एक भावना –प्रधान कहानी का उत्कृष्ट उदाहरण है।
आपकी कहानियों के दो संग्रह ‘नारी हृदय’ तथा ‘कौमुदी’ प्रकाशित हुए हैं।)
भादों का महीना था। महेशा अपने मैके गई। तीन बच्चों को पति के पास छोड़ कर वह अकेली ही गई वहाँ गई तो थी चार-पाँच रोज का वादा करके, लग गये तेरह दिन। जब वह तेरह दिन बाद घर आई, तो पतिदेव बोले – झल्लाये हुए बैठे थे – क्यों जी, तुम्हारी क्या आदत है। जाती हो तीन को कहके, लगा देती हो तेहर दिन! महेशा, उनके इस-तरह नादिरशाही हुक्म पर, बोली – साहब, मैं गई थी! मैं ही तो अकेली गई थी। तेरह दिन नहीं तेरह महीने लगा देती!
पति–अरे बाबा, तो तुम अपने बच्चे छोड़ गई थीं मेरे मत्थे। कैदी छोड़ कर मुझे गई थीं।
महेशा–बच्चे मैंने कहीं से लाकर पटक दिये हैं? बच्चे! ‘तुम्हारे बच्चे। तुम्हारे बच्चे!’ बच्चों का मैंने ही ठेका ले रखा है?
पति–तो फिर कह तो गई होतीं, कि मैं बच्चे ही पालता बैठे-बैठे!
महेशा–जब मैं काम नहीं करती थी, तो मेरे ऊपर कोई जिम्मेदारी नहीं। जब मैं यहाँ थी ही नहीं–तो मेरे ऊपर कोई जिम्मेदारी भी नहीं।
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