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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446
आईएसबीएन :978-1-61301-064

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


जब महेशा बहुत गर्मा चुकी तो पतिदेव कुछ नर्म पड़े। महेशा, तुम नहीं जानती हो, बच्चे पुरुषों के पालने की चीज नहीं। तुम्हारे चले जाने की वजह से बच्चों को भी तकलीफ हुई, मुझे भी। और फिर तुम्हीं ने तो सारे घर का काम अपने जिम्मे लेकर मुझे निकम्मा बना दिया है! एक तरह से, दफ्तर के अलावा मुझसे और कोई काम हो ही नहीं सकता। इस पर डर भी रहा था कि बच्चे शिकायत करेंगे कि हमें तकलीफ हुई और हमें पीटा। यह भी डर ऊपर से था।

जब पतिदेव अपनी परबशता बता चुके, तब महेशा ने भी अपने न आने का कारण बताया, और बोली, कि आखिर अगर शुरू से ही तुम साधारण तरह से बात करते, तो क्यों यह उलझन होती, हम दोनों में। एक दूसरे से क्यों हम उलझ पड़ते! पुरुषों का स्वभाव कुछ लंठ-सा होता ही है, और क्यों न हो! उनकी छठी की घुटी में यह डाल कर दिया जाता है कि तुम स्त्रियों पर शासन करना। बात दोनों की एक ही निकलती है। मसलहत दोनों की एक है। फिर बाद को आकर आखिर वही हुआ, जैसे कि होना चाहिए था बाकी वही तू-तू मैं-मैं की बात। शायद खुदा के यहाँ सहनशीलता जब बँट रही थी, उस समय भी दो पुरुष मिलकर आपस में तू-तू मैं-मैं करते रह गये होंगे।

परिदेव महाशय बोले–तो उसमें तुम कौन तू-तू मैं-मैं करने में कम हो?

तो इसका मतलब यह कि जब खुदा के यहाँ बँट रही थी सहनशीलता, तो उसे फिरश्तों ने ही पाया होगा, क्योंकि यहाँ स्त्री-पुरुषों में तो किसी ने नहीं पाया।

-अच्छा साहब, मेरा किस्सा सुनिये, मैं क्यों नहीं आई। बाढ़ के लिए बिहार मशहूर जगह है। पानी इस कदर बरसा, कि सड़कों पर नावें चलती थीं। उसमें, जिस रोज पानी बरसा, उस रोज मेरे मायके में मेरे भाई और भावजों को नींद ऐसी आई थी, जैसी मौत की नींद हो। मौतवाली नींद कहूँ, कि शराबी के नशेवाली। हम सब पानी में भीग गये। फिर भी किसी ने उठने का नाम न लिया। पानी में भीगने की वजह से जैसे सारा बदन ठंडा हो गया था। मैंने चारपाई में पड़ी-पड़ी अपनी भावज से खाने की तम्बाकू माँगी। शायद आँखें खोले तम्बाकू माँगी होती, तो कहीं और ठंड लग जाती! – यही खयाल रहा होगा। क्योंकि आँख बन्द ही थी मेरी। भावज तो वहाँ मौजूद नहीं। भाई को तो दो-तीन आवाज देने के बाद, मेरे बड़े भाई बोले– अरे, तू देखती नहीं है। सारे घर में पानी–ही-पानी तो भर गया है। भावज तेरी ऊपर है, छत पर। सब नालियाँ बन्द पड़ी हैं, और पानी चारों तरफ मकान में भरा हुआ है। मैंने यह सुन करके आँखें खोलीं। यह, वहाँ की, घटना देखती हूँ, तो पानी-पानी भरा हुआ है। वह तो कहो, ऊँचा बरामदा था, नहीं तो मैं भी उतरा चली होती।

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